________________
सप्टेम्बर २००९
अर्थतन्त्र आदि अनेक दृष्टिए नियन्त्रणने पात्र छे ए तथ्य पण तेमना ध्यान बहार रह्युं छे; फलतः राक्षसी उद्योगोना समर्थनमां तेमनी कलम चालती होय तेवी छाप पड़े छे.
आनी समीक्षा करतो लेख पण आ ज अंकमां छे, जेमां उपर्युक्त लेखनो मुद्दासर प्रतिवाद करवामां आव्यो छे.
१७१
मध्यकालीन गुजराती भाषाना क्षेत्रे करवा जेवां कार्योनी विशद विचारणा करतो संशोधनलेख पण आ अंकमां प्रकाशित छे. कान्तिभाई बी. शाहे आ क्षेत्रनुं महत्त्व अने हजी केटलुं केटलुं कार्य अपेक्षित छे तेनी विगतसभर विचारणा करी छे.
भ. महावीरना गर्भापहार प्रसंगनी चर्चा डॉ. जगदीश चन्द्र जैने तेमना संशोधनलेखमां करी छे. आयुर्वेदमां 'नैगमेषापहृत' जेवो गर्भ नष्ट थवानो प्रकार बतावायो छे ए जाणीने आश्चर्य थाय अने साथे साथे प्रश्न पण थाय के हरिणैगमेषी देव द्वारा गर्भापहारनी घटना बनी ते परथी भारतमां भारतना लोकोमां अने आयुर्वेदमां आ प्रकार परिगणित थयो के पछी भ. महावीर सम्बन्धित जे कोई घटना बनी तेनुं आयुर्वेदमां परापूर्वथी परिगणित एवा आ प्रकारना रूपे चित्रण करी समाधान आपवानो प्रयत्न थयो हतो ? निर्णय पर आववानुं कठिन छे; ब्राह्मण-क्षत्रिय कुलने स्पर्शती कोई घटना बनी छे जरूर. शास्त्रकारो एने आध्यात्मिक- वैश्विक दृष्टिकोणथी समजावे, इतिहासविदो ऐतिहासिक-सामाजिक दृष्टिकोणथी विचारे ए स्वाभाविक छे. आमां हवे आयुर्वेदिक दृष्टिकोण उमेराय छे. आ संशोधनलेख अन्तिम निर्णय सुधी भले न पहोंचाड़े पण एक मौलिक नूतन अभिगम अवश्य पूरो पाड़े छे.
जैन महाराष्ट्री प्राकृत साहित्यनी लाक्षणिकताओ पर प्रकाश पाड़ता डॉ. नलिनी जोशीना अंग्रेजी संशोधन लेखमां जैन साहित्यना इतिहासमां अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, अपभ्रंश भाषाओना प्रयोगना तबक्का तथा तेना सम्भवित कारणोनी विचारणा थई छे.
पंदर कर्मादानविषयक लेखनी समीक्षानो लेख मुनिश्री कल्याणकीर्तिविजयजीए लख्यो छे अने गर्भापहार विषयक लेखनो प्रतिवाद करतो लेख आ. श्री शीलचन्द्रसूरिजी लख्यो छे. परम्परागत मान्यताथी जुदी वात रजू करता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org