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________________ १३० विहंगावलोकन म. विनयसागर श्री अमृत पटेल ने अनुसन्धान अंक ४८ में पूज्य मुनिराज आगम प्रज्ञ मुनिश्री जम्बूविजयजी महाराज से प्रसादी के रूप में प्राप्त ताड़पत्रीय प्रति के आधार से खरतर पूर्णभद्रगणि विरचित "आणंदादिदस उवासगकहाओ" ग्रन्थ का सुन्दर सम्पादन कर प्रशस्त कार्य किया है। परवर्ती पट्टावलीकारों ने श्री जिनपतिसूरि को " षट्त्रिंशद्वादविजेता" लिखा है । उस प्रति की लेखन प्रशस्ति में श्रेष्ठी क्षेमन्धर का नाम आया है। श्री जिनपतिसूरिजी (आचार्यकाल संवत् १२२३ से १२७० ) का जीवन चरित्र जिनपालोपाध्याय (दीक्षा पयार्य १२२५ से १३१०) ने संवत् १३०७ में रचा है। उसमें लिखा है " संवत् १२१७ मणिधारी जिनचन्द्रसूरि ने श्रावक क्षेमन्धर नामक धनीमानी सेठ को प्रतिबोध दिया || ” ( खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास, पृ० ५४ ) " साधु क्षेमन्धर सेठ अपने पुत्र प्रद्युम्नाचार्य को वन्दना करने के लिए वादी देवाचार्य की पौषधशाला में पहुँचे ।" अर्थात् प्रद्युम्नसूरि सेठ क्षेमन्धर के पुत्र थे । ( खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास, पृ. ९८ ) Jain Education International साध्वी समयप्रज्ञाश्रीजी सम्पादित विविधकविकृत त्रण गेय रचनाओ, अंक ४८ में प्रकाशित हुई । उसमें सुमति - कुमति वादगीत के कर्ता लालविनोदी की कल्पना की है कि लालविजयजी होंगे । किन्तु, ये उत्तर प्रदेश के रहने वाले लालविनोदी हैं और दिगम्बर हैं । इनकी खड़ी बोली में गेय पद विपुल मात्रा में मिलते हैं । अनुसन्धान ४९ ~~x~ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520549
Book TitleAnusandhan 2009 09 SrNo 49
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages186
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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