SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ अनुसन्धान ४९ अमीअ समाणि विशाल वाणि कविजन मन मोहिई । निर्मल बुद्धि तणुं निवास सुर गुरु जिम सोहइ ॥३॥ सोमगुणे करी दीपतु ए जाणे पूनिम चंद । तपतेजइ दीपइ सदा भासुर जेम दिणिद ॥४॥ नवनिधान .......... (?) वाडि रूड़ि परिपालई । चउदह विद्या रयणरासि परि इहि सम्भालइ ।। विविध देश ऊपना भव्य समझावी लावइ ।।५।। दूषमकालि अवतरिउ ए धर्मचक्रवर्ति एह । सुन्दर गणधर पदधरु मुझ मनि नहीं संदेह ॥६॥ गोअम सोहम जम्बु पमुह पूरव रिषि तोलइ । तुम्ह कीरती ऊजलि देखी कुमतीइ सवि डोलइ ।। सयल राय तुम्ह नमई सुरपति गुण बोलइ सायरसम गम्भीर चित्त परदोस न खोलइ ||७|| रूप अनोपम तुम तणुं ए जोतां हरख अपार । युगप्रधान सोहाकरु जय जय जगदाधार ॥८॥ जो तुं आणा धरइ सोवि संसार न झूरइ । क्रोधादिक जे अन्तरङ्ग वैरी सवि मूरइ ॥ रोग शोक संताप ताप भविअणना चूरइ । जो तुम्ह सेवा करई तास मनवंछित पूरइ ।।९।। शिव सुख सम्पद दायकू ए दर्शन तोरु सामि । अलिअ विघन दूरइ टलइ मुनिवर ताहरइ नामि ॥१०॥ ओसवंश शृङ्गारहार कुंरा सुत सुणिइ । माता नाथी ऊयरि हंस सुरतरू सम गणीइ ।। थावर तीरथ सिद्धक्षेत्र जङ्गम ए भणीइ । पूज्य तुम्हारा गुण अनेक मइ किणि परि थुणीइ ॥११॥ कुशलवर्द्धन पण्डित गुरुए पभणए तेहनु सीस । हीरविजयसूरीसरू प्रतिपउ कोडिवरीस ॥१२।। इति श्री हीरविजयसूरीश्वर स्वाध्याय सम्पूर्णः C/o. १३ ए, मेन गुरुनानक पथ, मालवीयनगर, जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520549
Book TitleAnusandhan 2009 09 SrNo 49
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages186
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy