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आवरणचित्र - परिचय
१. नारी - अश्व पर सवार श्रीकृष्ण : मध्यकालना चित्रकारो मनोविनोदार्थे विविध चित्र - संयोजनो आलेखता रह्या छे. नारी-कुंजरनुं संयोजना- चित्र खूब जाणीतुं छे. जेम नारी - कुंजर तेम नारी- अश्व. आमां पांच स्त्रीओए पोतानां शरीरने एवी सुभग रीतिथी संयोजित कर्यां छे के ते संयोजन थकी ज चार पगाळा अश्वनुं सर्जन थई जाय छे. अने ते पंचनारी - अश्वनी पीठ पर श्रीकृष्ण आरूढ थया छे, अने ते अश्व तेमने झडपी गतिए लई जई रह्यो छे. कृष्णना ऊंचा थयेला हाथमां चाबूक होवानुं भासे छे, जे काल्पनिक बाबतने जीवंत वास्तविकता बक्षे छे. सम्भवतः १८मा शतकनुं राजस्थानी शैलीनुं चित्र.
२. चक्राकारे रास लेतो पुरुषः एक ज पुरुष वर्तुलाकारे भमतो होय त्यारे पेदा थता दृष्टिभ्रमने कारणे एक व्यक्ति अनेक रूपवाळी देखाती होय छे. आ दृष्टिभ्रमनुं मनभावन चित्रांकन ते आ चित्र. आ कल्पना प्राय: देलवाडानां शिल्पोमां कोतरेली जोवा मळे छे; ए रीते आ कल्पना ११-१२मा शतक जेटली जूनी गणाय. १८ मा शतकनुं राजस्थानी शैलीनुं लघुचित्र.
आ बन्ने चित्रो अमियापुरस्थित मेरुधामना प्रणेता आ. श्रीइन्द्रसेनसूरिजीना ग्रन्थसंग्रहमांथी फोटोकोपीरूपे मळेल छे, तेनी आभारप्रदर्शन सह नोंध लेवामां आवे छे.
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