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परम्पराने संशोधन सामे जो मुख्य फरियाद होय तो ते आटली ज छे. हेमचन्द्राचार्यने "प.पू. आचार्य भगवानश्री'' एवां साम्प्रदायिक विशेषणो साथे उल्लेखे नहि तो ते अंगे कोई फरियाद नथी - न होय; पण 'हेमचन्द्र' एवं कायम कहेवाने बदले 'हेमचन्द्राचार्य' 'शङ्कराचार्य' एटलो औचित्यपूर्ण निर्देश थाय तो आ फरियाद महदंशे शमी जाय.
आ फरियादने कारणे ज, धणां घणां संशोधनो कशाज वांधाविरोध विना स्वीकारवानी क्षमता, तत्परता अने उदारता होवा छतां, परम्परा द्वारा तेनो अकारण ज इन्कार थतो होय छे. आनाथी थतुं नुकसान केवल परम्पराने ज नथी, संशोधनक्षेत्रने पण छे ज.
अस्तु.
- शी.
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