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जून २००९
चतुर्विंशतिजिनस्तोत्रद्वय
सं. मुनिसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ जैन साहित्यमा २४ जिनेश्वरसम्बन्धी लघुकृतिओ अंगे तपास करता प्राकृत-संस्कृत-अपभ्रंश-मरुगुर्जर वगेरे भाषामां निबद्ध थयेल अनेक रचनाओ जोवा मळे छे. ते रचनाओ चतुर्विंशतिजिनस्तुति-चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र-चतुर्विंशतिजिनस्तव-चतुर्विंशतिजिननमस्कार-स्तोत्रकोश-स्तुतिचतुर्विंशतिका-चतुर्विंशतिका जेवां नामोथी ओळखाय छे.
तेमांनी केटलीक कृतिओ तो वर्द्धमानाक्षरछन्दबद्ध-प्रश्नोत्तरगर्भचित्रकाव्यमय-यमकादिअलङ्कारमय-नानाछन्दोमय-वस्तुछन्द-शार्दूलविक्रीडित जेवा मोटा छन्दबद्ध होय छे. वधु करीने (प्रायः) वर्तमान चोवीशीना भगवाननी १२-३ पद्योनी जोवा मळे छे. केटलीक कृतिओमां तो ५ के ७ पद्योमां ज २४ जिनस्तवना कवि पूर्ण करता होय छे.
स्तोत्रादि साहित्य सिवाय कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य कृत त्रिषीष्टशलाकापुरुषचरित्र, लालर्षि (लोकागच्छीय) कृत महावीरचरित्र जेवा ग्रन्थोमां अने केटलाक विज्ञप्तिपत्रोमां नमस्कारमंगळ स्वरूपे २४ जिनस्तुतिपद्यो जोवा मळे छे. अहीं पण नवप्राप्त २ कृतिओने सम्पादित करी छे.
(१) अज्ञातकर्तृक चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र - २७ श्लोकमां रचायेल संस्कृतभाषाबद्ध कृति. कृतिकारनी कदाच शरूआतनी रचना होई यमक (अन्त्यानुप्रास) मेळवता केटलाक पद्योमां व्याकरण - समास के शब्दप्रयोगमां खामी जणाय छे. श्लोक १०, ११, १२ अने १४ मां तो कविले छन्दनुं नाम पण समाविष्ट कर्यु छे. हस्तप्रतमां श्लोकना अन्ते छन्दना नाम पछी तेनी अक्षरगणना मुजबना वर्ग (?)नुं नाम पण आप्युं छे. प्रत भावनगर-श्रुतज्ञान प्रचारक सभानी छे. अक्षर सुवाच्य छे. पत्र संख्या १ छे.
(२) दीप्तिविजय कृत चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र - प्रस्तुत कृति १ मंगळप्रतिज्ञा पद्य + २४ जिनस्तुति पद्यो + १ प्रशस्ति पद्य अम कुल २६ श्लोकनी रचना छे. दरेक ज़िनस्तुतिमां कोईने कोई युक्तिपूर्वक परमात्मानुं गुणाधिक्य
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