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________________ ५४ ढाल श्री अरिहंत अनंत गुण, अतिशयपूरण गात्र, मुनि जे नांणी संयमी, ते उत्तम कहिइ पात्र ॥१॥ पात्र तणी अनुमोदना करतो जीरणसेठ, श्रावक अच्युत गति लहें, नव ग्रैवेकें हेठ, ॥२॥ दश चोंमासां वीरजी, विचरता संजमवास, विशालापुरि आवीआ, इग्यारमें चोमांस ॥३॥ चोमासें इग्यारमेंजी, विचरता साहसधीर, विशालापुर आवीआ, स्वामी श्रीमहावीर, ॥४॥ जगतगुरु त्रिशलानंदनजी (आंकणी), भलें में भेट्या श्रीजी (जि) नराय, सखीरी ! चोक वधावो आय, मेरे भाग अनोपम माय, जगत... ॥५॥ बलदेवनो छें देहरोजी, तिहां प्रभु काउसग्ग कीध, पच्चक्खाण चोमांसि (सी) नुंजी, स्वामि (मी) ओ तप लीध, जगत... ||६|| जीरणसेठ तिहां वसेजी, पाले श्रावकधर्म, आकारे तिणे ओलख्याजी, जांणें धर्मनो मर्म, जगत... ॥७॥ आज छें उपवासीआजी, स्वामी श्रीवर्धमान, काल सही प्रभु जीमस्येंजी, स्वहत्थें देस्युं दांन, जगत... ॥८॥ जीरणसेठ इम चितवेजी, सफल हुस्यें मुझ आस, पक्ष मास गणतां थकाजी, पूरण थयुं चोमास, जगत... ॥९॥ सामग्री सवी (वि) आहारनीजी, सेहजें हुइ तेणी वार प्रभुनो मारग पेखतोजी, बेंठो घरनें बार, जगत... ॥१०॥ घर आव्या छें पाहुणाजी, नुंतर्या ओक वार, प्रभुजी कीहां रे पधारस्येजी, में नुहतर्या वारोवार, जगत... ॥११॥ पछें करस्युं पारणुंजी, हुं प्रभुने प्रतिलाभ, होयें मनोरथ अहवाजी, तो ही न वरसें आभ, जगत... ॥१२॥ अवसरें उठ्या गोचरीजी, श्रीसिद्धारथपुत्र, विशालपुर आवीआजी, पु (पू) रणधरिं पहुत्त, जगत... ॥१३॥ Jain Education International अनुसन्धान ४७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520547
Book TitleAnusandhan 2009 00 SrNo 47
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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