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मार्च २००९
मुनि मालकृत श्रीमहावीरपारणास्तवन
सं. मुनि सुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ
प्रभु वीरना जीवनचरित्रमां भावदान विषय उपर जीरण शेठ तथा पूरण शेठनुं दृष्टान्त घणुं ज प्रचलित छे. प्रभुनुं चौमासी तपनुं पारणं कोणे कराव्युं ? कया द्रव्यथी कर्यु ? इत्यादि प्रसंगने प्रस्तुत कृतिमां कविओ खूब ज सुन्दरताथी वर्णव्यो छे. श ने बदले स नो प्रयोग अने अनुस्वारोनो छूटा हाथे करेलो प्रयोग अहीं ज्यां त्यां दृष्टिगोचर थाय छे. गाथा २९मां दान शब्द लहियानी भूलथी रही गयो लागे छे. गाथा - ३० मां " तान दी (दि)यों जीणें वरनेजी " ने बदले "दांन तणी अनुमोदनाजी" आ पाठ नेमि विज्ञानकस्तूरसूरिभण्डार (सुरत) नी प्रतमां जोवा मळे छे. जे वधु सुन्दर लागे छे.
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लोंकागच्छनी परम्परामां १७मा सैकाना उत्तरार्धमा अने १८मा सैकाना पूर्वार्द्धमां मुनि माल नामना प्रसिद्ध कवि थया. जेमणे १८१०मां आषाढाभूति चोपाई, १८५५मां एलाचीकुमार छ ढालियुं, १८२२मां इषुकार कमलावतीनुं छ ढालियुं, छ भाईनो रास इत्यादि पद्य साहित्यनी रचना करी छे.
बीजा एक मालमुनि नामना कविओ १६६३ पूर्वे अंजनासुन्दरीनी चोपाई रची. खास तो शब्द ( माल - मुनि) ना स्थान परिवर्तन थता सर्जाती मूंझवणनो आ एक सुन्दर दाखलो छे.
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प्रस्तुत स्तवनमा कर्ताना नामोल्लेख सिवाय गच्छ - गुरु इत्यादि कोई पण माहिती मळती नथी. कर्तानुं नाम 'मुनि माल' एम ज समजीओ तो ते लोकागच्छनी कृति गणाय, छतां विद्वानो विशेष प्रकाश पाडी शके.
प्रस्तुत कृति जीरावलाजी भण्डार (घाटकोपर) स्थित हस्तप्रतभण्डारनी छे. बीजी प्रत नेमिविज्ञान - कस्तूरसूरिजी भण्डार सुरतना संग्रहनी छे. परंतु अशुद्ध होवाथी मुख्य पाठान्तरो ज नोंध्या छे. प्रत आपवा बदल भण्डारना व्यवस्थापकोनो आभार.
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