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उसरावण हुं हूऔ उण थकी रे ए करिनैं उपगार । तौ पिण माहरा मनमैं युं रही रे आणुं माहरी नारि मौहैं० ॥ १६॥ तिहांथी चाल्यौ पल्लीपति घरे रे आधी राति अंधार ।
मैं जाइनैं पल्लीपति मारीयौ रे पूरौ दीध प्रहार मौ० ||१७|| नारी लेनें तिहांथी नीकल्यौ रे आयौ आपण गाम ।
माहरा कुटुंब हुती आवी मिल्यौ रे करिनैं आयो काम मौहैं० ॥१८॥ नारि आचार इसा हुं निरखिनैं रे जाणी अथिर संसार ।
छता कनक नैं कामिनि छोडिनैं रे लीधौ संजमभार मौहैं० ॥ १९॥ चीता आई ते मुझ वातडी रे महाभयं कह्यौ वचन्न | अभयकुमार कहैं अणगारजी रे धरमी गुरु थे धन्न मौहैं० ||२०|| इति सुव्रतसाधुसम्बन्धः समाप्तः । दोहा
तीजैं पहुरैं रातिरैं चेलौ धन्नौ नाम ।
गुरु सेवा कर थकैं हार देखि गलें ताम ॥१॥ उपासरामैं आवतां अतिभय कहीयौ तेम | अभयकुमार कहैं तुहे कह्यौ वचन ए केम ||२|| धन्नौ कहैं धुरवारता चितमैं आई चीत । अभय कहैं मुझ वारता संभलावौ शुभरीति ||३|| ढाल-सातमी
(आज आणंदा रे- एहनी - ) उज्जेणीनगरीत जीव जोवौ रे
अनुसन्धान ४७
हुं वसुं एकण गाम करमगति जोवौ रे । जांणी तल क्षत्रियकुलैं जीव जोवो रे
धन्नौ माहरौ नाम करमगति जोवौ रे ॥१॥
परण्यौ हुं धारापुरें जीव० एकदिन मनऊमाह करम० । स्त्री लेवानैं चालीयौ जीव० एकाकी असि साहि करम० ॥२॥ पुररैं पास मसाणमैं जीव० सूली दीधौ चोर पाप करम० । तिण पारौं तिय रोवती जीव० रातैं करें विलाप करम० ॥३॥
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