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________________ ४० उसरावण हुं हूऔ उण थकी रे ए करिनैं उपगार । तौ पिण माहरा मनमैं युं रही रे आणुं माहरी नारि मौहैं० ॥ १६॥ तिहांथी चाल्यौ पल्लीपति घरे रे आधी राति अंधार । मैं जाइनैं पल्लीपति मारीयौ रे पूरौ दीध प्रहार मौ० ||१७|| नारी लेनें तिहांथी नीकल्यौ रे आयौ आपण गाम । माहरा कुटुंब हुती आवी मिल्यौ रे करिनैं आयो काम मौहैं० ॥१८॥ नारि आचार इसा हुं निरखिनैं रे जाणी अथिर संसार । छता कनक नैं कामिनि छोडिनैं रे लीधौ संजमभार मौहैं० ॥ १९॥ चीता आई ते मुझ वातडी रे महाभयं कह्यौ वचन्न | अभयकुमार कहैं अणगारजी रे धरमी गुरु थे धन्न मौहैं० ||२०|| इति सुव्रतसाधुसम्बन्धः समाप्तः । दोहा तीजैं पहुरैं रातिरैं चेलौ धन्नौ नाम । गुरु सेवा कर थकैं हार देखि गलें ताम ॥१॥ उपासरामैं आवतां अतिभय कहीयौ तेम | अभयकुमार कहैं तुहे कह्यौ वचन ए केम ||२|| धन्नौ कहैं धुरवारता चितमैं आई चीत । अभय कहैं मुझ वारता संभलावौ शुभरीति ||३|| ढाल-सातमी (आज आणंदा रे- एहनी - ) उज्जेणीनगरीत जीव जोवौ रे अनुसन्धान ४७ हुं वसुं एकण गाम करमगति जोवौ रे । जांणी तल क्षत्रियकुलैं जीव जोवो रे धन्नौ माहरौ नाम करमगति जोवौ रे ॥१॥ परण्यौ हुं धारापुरें जीव० एकदिन मनऊमाह करम० । स्त्री लेवानैं चालीयौ जीव० एकाकी असि साहि करम० ॥२॥ पुररैं पास मसाणमैं जीव० सूली दीधौ चोर पाप करम० । तिण पारौं तिय रोवती जीव० रातैं करें विलाप करम० ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520547
Book TitleAnusandhan 2009 00 SrNo 47
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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