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________________ मार्च २००९ आ% माहरौ पति जौ पुरै रे तौ थे स्युं करौ जास । कहैं पल्लीपति अति संतोषिनै रे तुं परही युं तास मौहैं। ॥२॥ नखरा मांड्या सांभलि नारीमैं रे थाहरौ एह सनेह । माहरै तौ थेहिज आधार छौ रे दी. थां करि देह मौहैं० ॥३॥ शय्या नीचें हुं सगलौ सुणुं रे कहैं पल्लीपति तास । इतरा वचन कह्या जे एहवा रे हुं करतौ थौ हास मौहैं० ॥४॥ ताहरौ परण्यौ पति आवै इहां रे सही तसु करुं रे संहार । नयन संज्ञाय नारि दिखावीयौ रे मुझनैं दीधी रे मार मौहैं. ॥५॥ नीलैं वाध्रहुती मुझ बांधिनैं रे गलीमैं दीधौ गुडाय । सेजें पल्लीपति सूई रह्यौ रे नारी कंठ लगाय मौहैं० ||६|| सबलै वाध्र घडीकै सूकीयौ रे भाजण लागा मौर । वाध्रनी वासैं कुतरौ आवीयौ रे माहरा वखतनैं जोर मौहैं। ॥७॥ कुत” मुखसुं बंधण कापीया रे सहु अंग हूआ सरास । अमरस तौ पिण हं धरि अंगमैं रे पहतौ पलीपति पास मौहैं० ॥८॥ खड्ग पलीपतिनौ कर झालिनै रे तुरत जगाई नारि । मो साथै अणबोली चलि परी रे नहीतर जाइस मारि मौहैं० ॥९॥ महिला मन विण डरती मरणसं रे आई माह लार । चीरखंड नांखंती ते चलें रे अहिनाण काज विचारि मौहैं० ॥१०॥ जब पल्लीपति प्रहसम जागीयो रे नवि देखें ते नारि । वाहर चढीयौ परिवारसुं रे सबल रीसैं सिरदार मौहैं। ॥११॥ सालू टुकडारा स(अ)हिनाणसुं रे वाहर पहुती आइ । मुझ घाइल करि नारी ले गयौ रे हुं करतौ हायहाय मौहैं। ॥१२॥ रीवां करतौ मोर्ने देखिनै रे आयौ वानर एक । घसिनैं लेपी घाव ऊपरि जडी रे संरोहणी सुविवेक मौहैं. ॥१३॥ घाव समाधि हुआ माहरा सहू रे दूर हूऔ सहु दुख । पूरव पुण्यतणें परसादसुं रे सरीरैं हूऔ सुख मौहैं० ॥१४॥ टोलीसुं वानर टाल्यौ हुतौ रे वडौ हूऔ थौ औ (और) । तिणनैं मारी वानरयूथमैं रे थाप्पौ मूलगी ठौर मौहैं। ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520547
Book TitleAnusandhan 2009 00 SrNo 47
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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