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डिसेम्बर २००८
विहंगावलोकन
उपा. भुवनचन्द्र प्रशस्तिओ, शिलालेखो, प्रतिमालेखो ए इतिहासमुं एक महत्त्वपूर्ण साधन छे. अनु. ४५ मां अमदावादना शान्तिदास शेठे बीबीपुरमा बन्धावेला चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालयनी प्रशस्ति आपणी सामे आवे छे. उद्ध्वस्त थई चूकेला आ मंदिरनी प्रशस्ति (८६ श्लोक) कोई मुनि/यतिए प्रतमां ऊतारी राखी हशे तेथी अमदावादना जैन इतिहासनी मूल्यवान सामग्री लुप्त थतां बची छे. आ प्रशस्ति अद्यावधि अप्रकाशित छे के केम - ते सम्पादकोनी भूमिकामां स्पष्ट थतुं नथी.
प्रशस्तिमां पाण्डित्य अने काव्यरस भरपूर छे. प्रशस्ति/शिलालेखोमां मात्र जे ते मन्दिर-मूर्तिनी विगतो ज नहि, बन्धावनार श्रेष्ठी-राजा तथा प्रतिष्ठाकारक आचार्य साथे सम्बद्ध अन्य विगतो पण अपाती होय छे. प्रस्तुत प्रशस्तिमां पण एवी पुष्कळ विगतो छे.
सम्पादक मुनिद्वये प्रशस्ति साथे सम्बन्धित तथ्यो विविध स्रोतोमांथी मेळवी यथोचित विचार-विमर्श को छे अने सम्पादकोने छाजे एवो परिश्रम कर्यानुं प्रमाण आप्युं छे.
'चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थलम्'- ए एक 'शास्त्रार्थ' स्वरूपनी रचना छे. विविध व्याकरणोना मतोना खंडन-मंडनमां रचयितानुं व्याकरणविषयक ज्ञान झळकी ऊठे छे.
सत्तरभेदीपूजाना विषयनी एक गुजराती रचना आ अंकमां छे. ए काव्यात्मक ओछी छे, वर्णनात्मक वधु छे- 'पूजा' नथी, पण पूजाविधिनी निर्देशक छे. सम्पादकोए नोंध्युं छे तेम प्राचीन काळे सत्तरभेदी पूजा विशेष लोकप्रिय हती. एमां एटलुं उमेरी शकाय के अन्य विविध प्रकारनी पूजाओ हती ज नहि. अति पुरातन समयमां 'स्नात्रमह' हतो, पछी सत्तरभेदी पूजानो प्रचार थयो. अन्य पूजाओ तो त्यार पछी विकसी छे.
आ स्तवननी वाचनामां थोडां संशोधन स्थान छेक. १८ अमल
अमूल क. २०
लहेरे] [लह]लहे
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