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अनुसन्धान ४५
उचित है तथापि 'सड्डी' शब्द का प्रयोग प्रमुखता से श्रावक, उपासक या गृहस्थ के लिए ही हुआ है ।४२ 'श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र' में श्रावक के द्वारा नित्य आचरित अनुष्ठानों का ही विवेचन है ।
ब्राह्मण परम्परा में प्रचलित शब्दों को स्वीकार करके उनको नये अर्थ प्रदान करने की प्रथा जैन परम्परा में काफी मात्रा में दिखायी देती है। (९) मृत जीवों का विविध गतियों में गमन :
___ मार्कण्डेयपुराण में स्पष्टत: कहा है कि मृत मनुष्य देवलोक में, तिर्यग्योनि में, मनुष्यगति में तथा अन्य भूतवर्ग में भी जाते हैं ।४३ 'मरा हुआ प्रत्येक जीव पहले पितृलोक में ही जाता है', इस प्रकार का निःसन्दिग्ध कथन ब्राह्मण परम्परा के किसी भी ग्रन्थ में नहीं है। इसके सिवाय मनुष्येतर जीव मृत्यु के उपरान्त पितृलोक में जाते हैं या नहीं इसका भी निर्देश ब्राह्मण ग्रन्थों में नहीं है।
जैन परम्परा के अनुसार गतियाँ चार हैं ।४४ इसके अतिरिक्त पितृगति नाम की अलग गति या पितृलोक नाम का अलग लोक नहीं बताया है । जैनियों के कर्मसिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक जीव उसके कर्म के अनुसार उचित गति प्राप्त करता है ।४५ पितरों के कुछ कुछ उल्लेखों से यह सम्भ्रम उत्पन्न होता है कि पितृलोक को एक प्रकार का देवलोक क्यों नहीं माना जाय ?
जैन परम्परा में देवों के अनेक प्रकार, उपप्रकार तथा अलग अलग निवासस्थान निर्दिष्ट हैं ।४६ जैसे कि मनुस्मृति में निर्दिष्ट है ।४७ प्रायः उसी प्रकार जैन शास्त्र में भी किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत
और पिशाच ये आठ व्यन्तरनिकाय माने गये हैं ।४८ तथा ज्योतिष्क देवों का भी निर्देश है ।४९ पितृगतिप्राप्त कुछ पुण्यवान पितरों को अगर विशिष्ट प्रकार ४२. आचारांग १.३.८०; १.५.९६ सूत्रकृतांग १.१.६०; २.१.१५ ४३. मार्कण्डेयपुराण २३.४९ से ५२ ४४. स्थानांग ४.२८५
४७. मनुस्मृति अध्याय ३.९६ ४५. तत्त्वार्थसूत्र ६.१६ से २० ४८. तत्त्वार्थ ४.१२ ४६. तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ४
४९. तत्त्वार्थ ४.१३
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