________________
सप्टेम्बर २००८
६३
पछइ संघपति लगन गिणाया, पण्डित जोसी खेवि तेडाव्या
आव्या सुहगुरु पासि संवत चऊद वरिस पंचाणु, माह बहुल नवमीनिसि तक्खणु
दसमी दिवस मुहाण ॥४॥ मण्डिय धरणिन्द भिड पूरावइ, विसासु गजपीठ बंधावइ
____ आवइ आणंद पुरि दिन-दिन वाधइ अति दीपन्तु, वीझ महागिरि रइ जीपन्तु
खेयन्तु भव दूरि ॥५॥
॥ वस्तु ॥ चुमुख कारणि चुमुख कारणि बहुय वीस्तार, विसासउ गज पिहुल पणि साठ च्यार
सइ परिधि विस्तार इण परि पीठ बन्धावि करि हरख पूरि धरणिन्द सादर सोमसुन्दर सुहुगुरु तणउ निसुणीय वयण विचार शुद्ध दिवस मण्डाविउ सोहइ धरण विहार ।।६।।
॥ ठवणि ॥ नीपनां ए अतिसुविशाल सोहइ च्यारइ बारणां ए चिहुं दिसिइए आवता जाणि भवियण लोअण पारणां ए दीपतां ए पीठ ऊपरि देवछन्दइ विस्तर घणा ए चिहुदिसिइं ए मण्डिय च्यारि सिंहासण जिणवर तणां ए ||७|| च्यारइ ए एकतालीस अंगुलमाण जुगादिजिण थापिवा ए मण्डिउ जङ्ग सङ्घपति पूछिय सुद्ध दिण सिरिगुरु ए तवगछराय सोमसुन्दरसूरि करकमलि प्रतिट्ठिया ए संवत् चऊद अट्ठाणु फागुण बहुलई ....... ||८|| पंचमई ए परमाणंद चन्दन केसरि पूज करि झलकता ए मूलनायक कंचणमय आभरण भरिय थापिया ए चिहुदिसिई सार परगरसि उंपरि वारिया ए जाणइं ए धरणिन्द आज काज सवें मई सारिया ए ॥९॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org