SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ अनुसन्धान ४५ विशेष मेरे द्वारा लिखित कलपाक तीर्थ माणिक्यदेव ऋषभदेव नामक पुस्तक में लेखांक ११ से यह तो प्रमाणित है कि सोमसुन्दरसूरि के प्रमुख भक्त श्रेष्ठी गुणराज ने संवत् १४८१ में कुलापाकतीर्थ की यात्रा की थी। इस लेख में धरणिक का नाम आता है । यह धरणिक राणकपुर मन्दिर के निर्माता थे या गुणराज के पूर्वज थे यह स्पष्ट नहीं होता । लेखांक १०अ में भी गुणराज, सहसराज का नाम आता है । लेखांक ७ब के अनुसार सोमसुन्दरसूरि के शिष्य भुवनसुन्दरसूरि, ज्ञानरत्नगणि, सुधाहर्षगणि, विजयसंयमगणि, राज्यवर्धनगणि, चारित्रराजगणि, रत्नप्रभगणि, तीर्थशेखरगणि, विवेकशेखरगणि, वीरकलशगणि और साध्वी विजयमती, गणिनी संवेगमाला आदि के खण्डित शिलालेख प्राप्त होता हैं । लेखांक ८ संवत् १४७९ में भुवनसुन्दरसूरि का नाम प्राप्त होता है। लेखांक ९ संवत् १४८१ के लेख में श्रीसोमसुन्दरसूरि ने माणिक्यदेव आदिनाथ की यात्रा की थी यह उल्लेख भी प्राप्त होता है । यह स्तव ऐतिहासिक स्तव है और राणकपुर आदिनाथ मन्दिर का पूर्ण परिचय देता है अतः उसका मूल पाठ दिया जा रहा है : ॥ ॥ पणमिय नाभिररेसर नन्दन, गाइसु तिहूअण नयनानन्दन चुमुख धरण विहार सोहइ सुरपुर सम राणिगपुर, तिहां वसइ संघपति धरणागर प्रागवंश सिणगार ॥१॥ अनुक्रमि तवगच्छनायक सुहुगुरु, विहरन्ता पुहता राणिगपुर सुरतरुनिय परिसार सिरिसोमसुन्दरसूरि पुरन्दर, भविककमलवनबोधनदिनकर जुगवर कमलागार ।।२।। अमिय समाणि तसु मुखि वाणी, निसुणीय संघपति निय मनि आणी विनवय जोडी पाणि भगवन तुम उपदेश ऊपनु, भाव करावा श्रीचुमुखनु हु मुझ तुम पसाउ ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy