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________________ निवेदन गुजरातना अग्रणी साहित्यकार श्री शिरीष पंचाले पोताना 'विवेचनपोथी' नामना पुस्तकना आमुखमां एक सरस जाणवा योग्य वात लखी : "वडोदरा युनिवर्सिटीनी हंसा महेता लायब्रेरी, एक मोटु सुख-तमे बी.ए.ना छेल्ला वर्षमां हो तो जाते पुस्तको जोवा-तपासवानी छूट, पुस्तको ताळाकूचीमां न होय, अने एम घणां बधांने छींडं शोधता पोळोनी पोळो लाधी जाय." । आq ग्रन्थालय बहु गमे. ग्रन्थालय केयूँ होवू जोईए तेनी कल्पना, अंशतः, आवी जग्याए साकार थती अनुभवाय. बी.ए.ना छेल्ला वर्षवाळाने जो आटली छूट मळती होय तो, ते ग्रन्थालयमां जनारा अन्य वाचकोने पण, एटली छूट कदाच न मळती होय तोय, वांचन-अध्ययन-संशोधन आदि माटे पुस्तको तो उपलब्ध थतां ज हशे, एवं निःशङ्क कही शकाय. हवे जरा आनो बीजो छेडो जोईए : अमदावादना एक विख्यात अने विशाल ग्रन्थालयमां एवी स्थिति प्रवर्ते छे के त्यांनुं एक पण पुस्तक कोईने पण भणवा-वांचवा माटे बहार लई जवा न मळे. तमारे त्यां जईने ज ते वाचवू पडे, ते पण ग्रन्थपालनी अनुकूलता होय तो. बहार लई जवा माटे कां तो तमारे विशिष्ट लागवग, ओळखाण के भलामण शोधवानां रहे, अने कां तो तमारा खरचे तेनी झेरोक्स नकल करावीने लई जई शकाय. ते माटेनो खर्च ते संस्था कहे तेटलो आपवो पडे, अने तेमनी फुरसदे नकल करावी आपे त्यारे ज लई आववी पडे. फलत: ग्रन्थालयनो उपयोग नहिवत् रही गयो छे एम जाणवा मळ्या करे. जैन साधुने तो पुस्तक आपवानी खास अरुचि ! केम ? एटला माटे के ते लोको लई गया पछी पुस्तक पार्छ आपवानी दरकार नथी राखता - तेवं, ते संस्थाना लोकोए, क्वचित्, अनुभव्युं छे. __ आ क्षणे मने मारा परमगुरु आचार्य श्रीविजयनेमिसूरि महाराज याद आवे छे. तेओ कहेता : • भेगा करेला ग्रन्थभण्डारमांनुं कोई पुस्तक, सो वर्ष पछी पण, अभ्यासीने घणी शोधखोळ अने महेनत पछी पण क्यांयथी न मळ्यु होय, अने ते आपणा ग्रन्थभण्डारमा आवे, मागे वा शोधे, अने जो तेने ते पुस्तक मळी जाय, तो आपणे बनावेलो के संग्रहेलो आखो ग्रन्थभण्डार सार्थक छे. भले पछी तेना बीजा हजारो ग्रन्थो आम ज पड्या रहे ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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