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________________ मार्च २००८ अने योगना मार्गमां ज तेमणे आवधू पडे में आ पछी क्रमशः छए दर्शनवाळा केवी रीते योगमार्गनो स्वीकार करे छ तेनुं विशद चित्र कर्ता आपे छे. एमां प्रथम शाक्य-सौगत (बौद्ध) दर्शनीओनी वात छे. दरेकर्नु पोतानु- पोताना दर्शन- तत्त्वप्रतिपादन ज योगमार्गपरक होय छे तेवी प्रस्तुति, ते ते दर्शननां तत्त्वोनी वात लईने कर्ता करे छे, ते बहु ज रोचक अने हृदयंगम लागे छे. १२-१४ पद्योमा 'सौगत'नी वात थई छे. १५-१९मां नैयायिकोनी वात छे. २०-२५मां सांख्योनो स्थिति दर्शावी छे, २६-३०मां मीमांसकोनी योग-साधना-परक स्थिति वर्णवी छ. तो ३१-३२ एम बे पद्योमा 'चार्वाक' नी पण योगोपासना बतावी दीधी छे. 'चार्वाक' भूत (भौतिक जगत्) नो ज स्वीकार करे छे. तो तेने कहे छे के "भूतसिद्धि समाधि सिद्ध थया विना थाय नहि अने भूतसिद्धि थाय तेने ज अमे 'मुक्त' आत्मा गणीए छीए. एटले हे नास्तिक ! जो 'भूत' सिवाय तारा चित्तमां कशुं ज अभिप्रेत न होय तो तुं पण 'मुक्त' ज गणाय." छेल्ले जैन दर्शननी वात ३३-३५ पद्योमा करवामां आवी छे. आमां कर्ताए जैनमतना प्रवर्तक 'जिन'नी जगत्प्रसिद्ध मुद्रानी वात अत्यन्त सुघडताथी करी छ : "नासिकाने टेरवे पोतानी दृष्टिने टेकवीने, पद्मासनमां कायाना शिथिलीकरणपूर्वक बेठेला 'जिन' तो, वर्तमान युगना लोकोने, पोतानी आवी अद्भुत मुद्रा द्वारा ज ध्यानमार्ग समजावी दे छे !" पछीनां २ पद्योमां जिन भगवाननी साधनानो अर्क कर्ताए तारवीने आपी दीधो छे ! आईं तादृश वर्णन तो कोई नीवडेल योगी ज करी शके ! पद्य ३७-३८ मां समापनसूचक वचनो छे. तेमां कर्ता कहे छे के 'परमाणु गुरु' नी वाणीमांथी प्रगटेल आ वचनामृतने अल्पोक्ति जेवां विकल्पात्मक वचनो वडे कोई मलिन न करशो. केम के निरीह एवा सिद्धोनां वचनो कदी पण विपरीत होतां नथी. आ पछीनां पद्यो उपसंहारात्मक छे. पांच पानांनी आ प्रति महदंशे शुद्ध-अतिशुद्ध छे. क्यांक कोईक पाठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520543
Book TitleAnusandhan 2008 03 SrNo 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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