SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान ४३ आवा विश्वास साथे कर्ता प्रथम प्रकरणमां 'स्थान' नुं निरूपण मांडे छे. तेमनुं कथन छे के " धर्म अने मोक्ष एम बे पुरुषार्थ छे जरूर; पण शरीरमां त्रिदोष आदि विविध दोषो संभवता होई पहेलां धर्म-पुरुषार्थमां ज प्रयत्न थाय ते जरूरी गणाय, शरीरने सुस्थित बनाववा माटे. शरीरमां स्थिरता आवे तेवां कर्म अहीं वर्णववानां छे; ते कर्मो 'स्थान' मां वर्तनारा चित्तने आधीन छे. ते 'स्थानो' नुं नामादि स्वरूप विशदताथी कर्ता आलेखे छे, जेनुं तत्त्व योगसाधकोने समजाय तेम छे. ४३मा पद्यमां विविध पदो (स्थान) हांसल थतां थतां छेवटे मळनारा 'परम पद'नी वात छे. पद्य ४४मां शरीर, सूक्ष्म शरीर, ऊर्ध्व शरीरनां माप वर्णवायां छे. बीजा नाडी प्रकरणमां ईडा, पिङ्गला आदि नाडीओनुं वर्णन थयुं छे. त्रीजा प्रकरणमां विविध स्थानो परत्वे मन्त्रबीजाक्षरो तथा तेना प्रभावनुं मार्मिक वर्णन थयुं छे. बीजाक्षरो पण नोंधेल छे. तो चोथा प्रकरणना प्रारम्भे ज कर्ता कही दे छे के "ज्यां सुधी ध्यानसाधना न थाय त्यां लगी आ मंन्त्रो फलीभूत थाय नहि, माटे आ प्रकरणमां ध्याननुं विधान करूं छं." अने ते रीते ज आ प्रकरणमां ध्यान धरवानी प्रक्रिया तेमज ते ते मुद्रामां ते ते प्रयोजन माटे जपवाना मन्त्राक्षरो वगेरेनुं स्पष्ट वर्णन करेल छे. तेनां फल पण वर्णव्यां ज छे. पांचमा चन्द्र-कर्म प्रकरणमा १६ कलाओ - 'शङ्खिनी' वगेरे 'शङ्खसारण' वगेरे ४२ कर्मोनां नाम तथा काम वर्णवेल छे. छठ्ठां सूर्यकर्म प्रकरणमां सूर्यनी १२ कलाओ तथा ४२ कर्मोनां नाम काम आदिनुं विस्तृत वर्णन थयुं छे. तथा - Jain Education International - सातमा प्रकरणमां पांच भूत तत्त्वोनी सिद्धि वर्णवाई छे. क्यारे कयुं तत्त्व गौण के प्रधान होय, शेनी वध-घट क्यारे ने शी रीते - शा कारणथी थाय, तथा पांच तत्त्वोनी सिद्धि कोने मळे तथा तेना फल - फायदा शा, तेनुं वर्णन आ प्रकरणमा थयुं छे. For Private & Personal Use Only -- आठमा प्रकरणमां मन- इन्द्रियो - शरीरने वश करवापूर्वक मुक्ति केम मळे तेनुं तात्त्विक चिन्तन थयुं छे. आमां ११मा पद्यमां कर्ता भूमिका बांधतां स्पष्ट जणावे छे के "जेम नदीओ पोतानामां मस्त होवा छतां समुद्रमां प्रवेश करे छे, तेम छए दर्शनोना तत्त्वमार्ग जुदा भले होय तो पण छेवटे तो समाधि www.jainelibrary.org
SR No.520543
Book TitleAnusandhan 2008 03 SrNo 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy