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अनुसन्धान ४३
सखि प्रतपउ ए अम्ह गुरु जां जगि सूर अईया प्रतपउ ए अञ्चलगच्छ नरिंद ॥५॥
इति श्री गुरु भास
(२) कविआस प्रणीत
आज घरि घरिइं वधामणां, हरख लइ चतुर्विध संघ ए । आरे श्री विधिपक्ष गच्छनायक, जयवंत जयकेसरिसूरिंदरे ॥ मिलउ सहेली सुगुरु तणा गुण गाउ ए । कनक थाल मोतीडां भरि जयकेसरिसूरि वधावउ रे || १||
॥ मिलउ सहेली, आंचली ॥
जिम तारायण चांदलउ, तिम मुखि अमीय झरंतू ए । सूरि श्रीजयकेसरिसुगुरु अम्ह तरणि परि तपंतू रे ॥ २ ॥ मिलउ सहेली ॥ सुललित वाणी सुणजइ, श्रवणि अमीरस पीजइ रे । श्रीजयकेसरिसूरि तरणतारण सिरि लुंछणडां करीजइ रे ॥ ३ ॥ मिलउ सहेली ॥ आस भणति अईसा सुगुरु तुम्ह जयउ संघपति आसधीर तनू रे । संघपति महिपाल जयपाल, जयकेसरिसूरि प्रसन्नू रे ॥ ४ ॥ मिलउ सहेली ॥ (इति) श्री गुरु भास
(३) हरसूर प्रणीत
ऊलट अंगि अपार कामिनि करउ सिणगार
मोतीय थाल भरी वधावउजी ।
सही ए अम्ह सुहगुरु आईला श्रीजयकेसरिसूरी । सही ए. ॥ १ ॥ आ. ।
अहव सूहव आवउ माणिक चउक चूरावउ । गच्छनायक गुण गाउजी । सही ए. जयकित्तिसूरि पाटोधर कलि गोयम अवतार । तरणतारण पाय सेवउजी । सही ए.
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॥ २ ॥
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