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________________ मार्च २००८ हुए हैं 1 इक्षु, दूध-शक्कर, के समान आचार्य-वाणी को उपमा प्रदान की गई है । आचार्य को जङ्गम गुरुओं में गोयम गणधर, शील में जम्बूकुमार, मुनीश्वरों में वज्रकुमार आदि की उपमा देते हुए गुरुगुण से पाप भी पलायन कर जाते हैं, ऐसा उल्लेख है । भक्तजनों के आल्हाद के लिए चारों लघु कृतियाँ प्रस्तुत हैं : ६६ अञ्चलगच्छीय श्री जयकेसरीसूरि भास (१) श्री जीराउलि पास पूरई रे मनची आस । आणीय मनि उल्लास पणमिय जिनवर पास ॥ सखि गाइसिउं ए अञ्चलगच्छ नरिंद अईया गाइसिउंए अञ्चलगच्छ नरिंद लाखणदेविउं दार जाईउ सुत सविचार धन धन राजकुमार आदरिउ सूरिपयभार । वंदिसिउं ए श्री जयकेसरिसूरि अईया वंदिसिउं ए अञ्चलगच्छ नरिंद देवसीयसाह मल्हार, अञ्चलगच्छ सिणगार पूरव रिषि आचार, पालई ए निरतीचार । सखि गाजइ ए गणहर मुणिवर थाटि अईया गाजइ ए अञ्चलगच्छ नरिंद गुरु गोयम अवयार, शासन तणउ आधार जाणइ सयल विचार, गुरुयडि गुण भंडार । सखि दीपइ ए दसदिसि कीरति जास अईया दीपई ए अञ्चलगच्छ नरिंद गुरु मुख पूनिम चंद, दीठइ परमाणंद रंजण गंगनरिंद, सेव करई सूरिंद । Jain Education International For Private & Personal Use Only ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ 11811 www.jainelibrary.org
SR No.520543
Book TitleAnusandhan 2008 03 SrNo 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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