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________________ अनुसन्धान ४३ . २६३४ इलादुर्ग माता के साथ दीक्षा, सूरपद प्राप्त हुआ प्राप्त इसका स्फुट पत्र प्राप्त है, जिसमें चारों ही कृतियाँ एक साथ ही लिखी गई हैं । इस पत्र का माप २४.३ - १०.४ से.मी. है, पत्र १ हैं, दोनों भासों की कुल पंक्ति १५ तथा प्रति अक्षर ४२ हैं । लेखन समय सम्भवतः १७वीं सदी का अन्तिम चरण है । शासन प्रभावक विजयदेवसूरि प्रसिद्धतम आचार्य हुए हैं । ये जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि के प्रशिष्य तथा श्रीविजयसेनसूरि के पट्टधर थे । विक्रम संवत १६३४ इलादुर्ग में जन्म, संवत १६४३ राजनगर में श्री हीरविजयसूरि के करकमलों से माता के साथ दीक्षा, १६५५ सिकन्दरपुर में पन्यास पद, १६५६ स्तम्भतीर्थ में उपाध्याय पद और सूरिपद प्राप्त हुआ एवं श्री विजयसेनसूरि के स्वर्गवास के पश्चात् संवत १६७१ में भट्टारक पद प्राप्त किया । जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरि के पश्चात् विजयदेवसूरि की दिग्गज आचार्यों में गणना की जाती है । विजयदेवसूरि रचित कोई साहित्य प्राप्त हो एसा ज्ञात नहीं है, किन्तु इनसे सम्बन्धित खरतरगच्छीय श्रीवल्लभोपाध्याय रचित (र.सं.१६८७ के आस-पास) विजयदेवमाहात्म्य और श्री मेघविजयजी रचित श्रीतपगच्छापट्टावलीसूत्रवृत्त्यनुसन्धानम् के अनुसार इनका संक्षिप्त जीवन चरित्र प्राप्त होता है । सम्राट अकबर के सम्पर्क में ये आए हो ऐसा कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, किन्तु सम्राट जहांगीर के समय में इनका प्रभाव अत्यधिक बढ़ा था। जहांगीर इनको बहुत सम्मान देता था और गुरु के रूप में स्वीकार करता था । यही कारण है कि संवत् १६८७ माण्डवगढ़ में श्री जहांगीर ने इनको महातपा बिरुद प्रदान किया था । ___ इन्हीं के कार्यकाल में विजयदेवसूरि एवं विजयआनन्दसूरि शाखाभेद हुआ । श्रीदर्शनविजयजी ने विजयतिलकसूरि रास में जिस घटना का वर्णन किया है, वह विचारणीय अवश्य है । खरतरगच्छीय श्री ज्ञानविमलोपाध्याय के शिष्य श्री श्रीवल्लभोपाध्याय ने तो इसका संकेत मात्र ही किया है और सम्भवतः इनकी कीर्ति से प्रभावित होकर श्री वल्लभोपाध्याय ने विजयदेवमाहात्म्य रचा था । संवत १६८७ के पश्चात् किसी घटना का उल्लेख नहीं है। इसी वर्ष इस माहात्म्य को पूर्ण कर दिया । स्तम्भनतीर्थ, इलादुर्ग, घोघाबन्दर, द्वीप, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520543
Book TitleAnusandhan 2008 03 SrNo 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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