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डिसेम्बर २००७
नेमिसरनि वरकाया काहे इतनी करी माया । विरहानल मोहि लगाया छबीले नेमिजिणिंद न आया ॥४॥ मोहि चित्त चमक्कउ लाया नेमीसर छोडि सधाया । अब काह करूं मोरि माया छबीले नेमिजिणिंद न आया ॥५॥ जिणई नेम जिणेसर पाया धन सो जन जगमां आया । हम बिलवति राजुल राया छबीले नेमिजिणिंद न आया ॥६॥ भव संतति दोर कपाया राजुल पहु केवल पाया । मुनि सिद्धिविजय गुण गाया छबीले नेमिजिणिंद न आया ॥७॥
इति श्री नेमिनाथ भास समाप्त
(२) नेमिनाथ-भास सुणउ मेरी बहिनी काह करीजइ रे, नेमि चलउ हइंकु दिन लीजइ रे ॥ सुणउ मेरी बहिनी ॥ १॥ उन दरिसन विन लोचन खीजइं रे, युं सरजल विन सफरी थीजई रे ॥ सुणउ मेरी बहिनी ॥२॥ विरहानल मुदि देह दहीजइ रे, मनकी वात कहो क्या कीजइ रे ॥ सुणउ मेरी बहिनी ॥३॥ तोरणथी जउ फेरी चलीजइ रे, तउ किन कारण इहां आईजइ रे ॥ सुणउ मेरी बहिनी ॥४॥ जउ उनकी कब बात सुणिजइ रे, हार वधाइउ उसकुं दीजइ रे ॥ सुणउ मेरी बहिनी ॥५॥ सोच न जीहा तास घडिजइ रे, जउ उनविय वात सुणीजइ रे ॥ सुणउ मेरी बहिनी ॥६॥ . नेमि जिरंजन ध्यान करीजइ रे, सिद्धिविजय मुख करतल लीजइ रे ॥ सुणउ मेरी बहिनी ॥७॥
इति श्री नेमिनाथ भास समाप्त
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