________________
अनुसन्धान-४१
न गमे पण, आपणे स्वीकारवो ज पडे. पोताना मन्तव्यना समर्थनमा तर्को वगेरे तेमणे आप्या ज छे; अने छतां परम्पराप्राप्त पद्धतिजन्य अन्य अर्थघटननो तेमणे तिरस्कार नथी कर्यो, पण टिप्पणीमां राखवानुं स्वीकार्यु छे. आवी समजण केटला लोको दाखवी शके ? . पत्र संस्कृतमां लखायो छे. तेनी भाषा तथा रजूआत/शैली जोतां कोईने ख्याल न आवे के आ पत्र कोई जर्मन विद्वाने लखेलो छे ! एमनां विधानो के मन्तव्यो साथे साव असम्मत होवा छतां एमना ज्ञान अने चिन्तनने तो दाद आपवी ज पडे.
आ पछी आवे छे डॉ. याकोबीना पत्रनो मुनिद्वय द्वारा अपायेल प्रत्युत्तर. खीमजी हीरजी कायाणी द्वारा याकोबीनो पत्र विलम्बे पहोंच्यो होई तेनो जवाब राजनगर (अमदावाद)थी बन्ने मुनिओ आपी शक्या छे ते पत्र वांचतां जणाय छे. प्रायः सं. १९५६- ए वर्ष होवू जोईए.
आ पत्रमा तेमणे डो. याकोबीना पत्रगत मुद्दाओ- सुपेरे खण्डन कर्यु छे. परन्तु याकोबीने तेमणे सम्बोधन कर्यु छे ते खास ध्यान आपवा योग्य छे : "ज्ञानाभ्यासविलासवासितान्तःकरणान् संस्कृताध्यापकान्". केटलो विवेक नीतरे छे आ शब्दोमां ! मतभेद एटले झघडो के विरोध ज एवी वृत्ति आ लोकोमां नहोती, तेनुं आ ज्वलन्त उदाहरण छे.
नेमिविजयजीए अमदावादमां 'जैन तत्त्वविवेचक सभा' स्थापी हती, अने तेना उपक्रमे 'जैन तत्त्वविवेचक' नामे मासिक पत्रिका पण प्रगट थती हती, ते जणावq अहीं उपयुक्त छे. ते सभाना सेक्रेटरी शाह केशवलाल अमथाशा वकीलना नामे तेओए जवाब मंगाव्यो छे. परन्तु ते पछी कोई जवाब आव्यो होय तो ते प्राप्त नथी.
आपणा इतिहासमुं एक वीसरावा आवेलुं आ प्रकरण छे. आम छतां हजी पण क्यारेक क्यारेक आ विषय पर गमे तेवा अनधिकारी माणसो गमे तेम लखी नाखता जोवा-जाणवा मळे छे. प्रस्तुत थयेल पत्रादि लेखो, एक बाजुए आ विषये मार्गदर्शन आपी शके तेम छे, तो बीजी बाजुए काळना गर्तमां सरी पडता एक ऐतिहासिक पृष्ठने चिरंजीवी बनाववानो पण आमां खयाल छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org