SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ October-2007 छपायो; ते पत्रनी नकल श्रावक हीरजी खीमजी कायाणी नामे गृहस्थ द्वारा स्तम्भतीर्थ-खम्भातमां बिराजता मुनि नेमिविजयजी तथा आनन्दसागरजीने प्राप्त थई; ते बन्नेए तेना जवाबमां जे पत्र - लेख लख्यो, ते ते समये 'परीहार्यमीमांसा' नामे पुस्तिकारूपे प्रकाशित थयो. तेमणे निघण्टु आदि विविध शास्त्रो, टीकाग्रन्थो आदिनां/प्रमाणो टांकीने तथा विविध तर्क अने युक्तिओपूर्वक, 'जैन आगममां मांसाहारनुं विधान छे' तेवी, उक्त विद्वानोनी वातनुं खण्डन करेल छे. साथे ने साथे, ते समये कोई जैन गृहस्थे पण उक्त बे विद्वानोना मतनुं समर्थन करतो लेख समाचारपत्रमां लख्यो हशे, तेनुं पण 'श्रमणोपासकापलापप्रकाशः ' एवा शीर्षक नीचे, आ ज पत्र - लेखमां बन्ने मुनिओए खण्डन कर्युं छे. आ पुस्तिका सं. १९५५मां खम्भात - जैनशालाना शेठ पोपटलाल अमरचंदे प्रकाशित करी हती. पं. गम्भीरविजयजीनी सौम्य भाषानी तुलनामां, ते वखते युवान एवा आ बन्ने मुनिराजोनी भाषामां आक्रमकतानो स्पर्श माणी शकाय छे. तो पाछळनां वर्षोमां जैन संघमां 'शासनसम्राट्' तथा 'आगमोद्धारक' एवा बिरुदो वडे विख्यात बनेला महान जैनाचार्योनो मैत्रीपूर्ण सहवास तथा सहयोगमां कार्य करवानी रीत ए बधांनो पण आ पत्र - लेख द्वारा संकेत मळी आवे छे. त्रीजा क्रमांके आवे छे डो. याकोबीनो उक्त बे मुनिओ उपर आवेल जवाब. तेमां तेमणे 'जे ते शब्दो वनस्पतिवाचक नहि, पण मांसादिवाचक ज छे' एवा पोताना मन्तव्यना समर्थनमां दलीलो- तर्को आलेख्या छे. छेवटमां तेमणे बे महत्त्वनी वातो नोंधी छे : "अमने तो आ ज अर्थ बेसे छे. परन्तु अमे न समजी शकता होईए अने अन्यथा अन्य अर्थ पण अभ्यासीओ करी शकता होय तो तेओ भले तेम करे. अने, जो अमे अमारा द्वारा सम्पादित आचाराङ्गसूत्रनी बीजी आवृत्ति छापीशुं, तो टिप्पणीरूपे तमे बेए जणावेल अर्थ जरूर टांकीशुं." परम्परा अनुसार ते विद्वाने करेल अर्थ अनधिकृत - अनुचित भले हतो; पण एक त्राहित अभ्यासी तरीके तेमणे सूत्रना शब्द तथा तेना प्राथमिक थता अर्थने स्वीकारीने पोतानुं मन्तव्य जाहेर करेलुं, ए मुद्दो, आपणने गमे के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520541
Book TitleAnusandhan 2007 10 SrNo 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy