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अनुसन्धान-४१
४० ८६ २७ १
४१ ३६ ३१ १३
३१ १६
शी.
३१ १८ २८ ९८
३३ ७५ ३३ ७५ ३३ ७७
नवां प्रकाशनो नाटिकानुकारि षड्भाषामयं महो. रूपचन्द्र विनयसागर
पत्रम् निगोदथी मोक्ष सुधी प्रो. पद्मनाभ एस. जैनी (श्री)नेमिनाथादिस्तोत्रत्रय
विनयसागर - उज्जयन्तालङ्कार
नेमिजिनस्तोत्र आ. जिनपतिसूरि - गौतमगणधरस्तवद्वयम् आ. जिनेश्वरसूरि पत्रचर्चा पत्रचर्चा
मुनि भुवनचन्द्र पत्रचर्चा
विनयसागर - पाठक रघुपति
विनयसागर - वाचक लब्धिरत्नगणि खरतरगच्छके थे
विनयसागर पत्रचर्चा : षड्भाषाबद्ध चन्द्रप्रभस्तव के कर्ता जिनप्रभसूरि है
विनयसागर पत्रचर्चा :
विनयसागर - जसराज ही जिनहर्षगणि है
विनयसागर - उ. चारित्रनन्दीकी गुरुपरम्परा एवं रचनाएं विनयसागर - कल्याणचन्द्रगणि
विनयसागर - सम्पादकीय टिप्पणी : चिन्तन
विनयसागर पन्नरतिथि
मुनीचन्द्रनाथ शी. परमयोगीराज आनन्दघनजी महाराज अष्टसहस्री पढाते थे
विनयसागर परीहार्यमीमांसा मुनिनेमिविजय-मुनिआनन्दसागर शी. पञ्चकपरिहाणि तथा आलोचना विधान
आ. जयसिंहसूरि शी. 'प्रमाणसार विषे प्रणम्यपदसमाधानम् उ, सूरचन्द्र विनयसागर (श्री)पार्श्वनाथस्तोत्रद्वयम् श्रीवल्लभोपाध्याय विनयसागर -पार्श्वनाथस्तोत्रम्
विनयसागर -तिमिरीपुरीश्वरश्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम्
विनयसागर
३४ ५५ २८ ५४ २८ ५४ २८ ५६ २८ ६२ २८ ६५ २९ २३
३६ २९ ४१ १२
३७ १ २७ ६७
शी.
२८ २९ २८ ३१ २८ ३३
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