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अनुसन्धान-४१ हैं । मीणालोग ढोक देते हुए जाते हैं, दर्शन करते हैं, उत्कट भक्ति से उनके गुणगान करते हैं, यहाँ तक की मेले के दिवस मीणा जाति का प्रमुख के द्वारा ही रथ का संचालन करने पर रथयात्रा निकलती है ।
उसी प्रकार केसरियानाथजी भी भीलों के कालाबाबा हैं । वे बाबा के दर्शन कर अपने को कृतार्थ समझते हैं, ढोक देते हुए आते हैं, मिन्नते माँगते हैं, मिन्नते पूर्ण होने पर पुनः ढोक देने आते हैं, अपने जीवन के समस्त कार्यों में कालाबाबा को याद करते हैं । कालाबाबा ही उनका उपास्य देव है । इनके आवागमन, पर, दर्शन पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध न तो पूर्व में था और न आज है ।
आज से ६०-६५ वर्ष पूर्व मेवाड़ देश और गोरवाड़ प्रदेश में जब कोई भी आपस में मिलते थे तो अभिवादन के तौर पर जय केसरियानाथ की इन शब्दों से अभिवादन करते थे। सारा राजस्थान गुजरात महाराष्ट्र आदि के भक्तों के झुण्ड के झुण्ड यहाँ यात्रार्थ आते थे, केसर चढ़ाते थे, वहाँ प्रतिदिन छटांग, सेर ही नहीं अपितु मणों के हिसाब से केसर चढ़ाते थे । इसी केसर के कारण भगवान आदिनाथ भी केसरियानाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
इस प्रकार हम अनुभव करते हैं कि यह तीर्थ श्वेताम्बर जैन संघ का है। कृपाचन्द्रसूरि चरित्र के अनुसार संवत् १९८० में श्वेताम्बरत्व सूचक शिलापट्ट भी था जिसको महाराणा ने स्वयं देखा था। अत: राजस्थान सरकार से निवेदन है कि नियमानुसार इसका अधिकार एवं व्यवस्था श्वेताम्बर जैन समाज को प्रदान कर अपने कार्यकाल को सफल बनावें ।
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