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________________ अनुसन्धान-४० माहिती नवां प्रकाशनो २. १. उपदेशप्रदीपः कर्ता : पं. मुक्तिविमल गणि; सं. मुनि धर्मतिलकविजय; प्र. स्मृतिमन्दिर प्रकाशन, अमदावाद; सं. २०६३ । लगभग पोणा चारसो जेटलां धर्मविषयक उपदेशात्मक सुभाषितोना संग्रहसमी रचना. जुदा जुदा ३५ जेटला विषयो विषे श्लोकोनी रचना आमां छे. स्वाध्याय, प्रवचन माटे उपकारक रचना. नवतत्त्व संवेदन प्रकरण : स्वोपज्ञविवरणसमेत; कर्ता : महामन्त्री दण्डनायक अम्बप्रसाद; सं.प्र. वगेरे ऊपर मुजब. वि.सं. १२२०मां गुर्जर राज्यना मन्त्री श्रावके जैन दर्शनना मूळसमा ९ तत्त्वो विषे पोतान संवेदन आ श्लोकबद्ध ग्रन्थमां तथा तेना विवरणमां आलेख्युं छे, जे एक सुखद आश्चर्य जन्मावे छे. अम्बप्रसाद-आम्बड मन्त्रीना बाहुबल तथा युद्धकौशल तेमज राजनीतिज्ञता विषे तो इतिहासना ग्रन्थोमां वांचवा मळे छे, परन्तु ते संस्कृतना तथा तत्त्वज्ञानना आटला उत्तम विद्वान हशे तेनी जाण तो आq प्रकाशन जोवा मळे त्यारे ज थाय छे. वि.सं. २००७मां गणी बुद्धिसागरजी द्वारा संशोधित आ ग्रन्थनुं यथावत पुन:मुद्रण आ पुस्तकरूपे थयुं छे. श्रीसमवसरण साहित्य संग्रह : सं. प्र. ऊपर मुजब. श्रीधर्मघोषसूरिरचित 'समवसरणस्तव' आदि, जैन तीर्थंकरना समवसरणना विधानने अनुलक्षीने रचायेली, विविध लघु रचनाओ, संकलनसम्पादन आ पुस्तकरूपे थयुं छे. उपरांत समवसरणनो अधिकार जे जे ग्रन्थमां होय तेनो स्थानोल्लेख पण आमां सम्पादक द्वारा अपायो छे. समणसुत्तं (जैन धर्मसार) : गुजराती अनुवाद साथे अनु. मुनि भुवनचन्द्र; प्र. यज्ञ प्रकाशन, वडोदरा; ई. २००७ भ. महावीर प्रभुनी २५मी शताब्दीना उपलक्ष्यमां श्रीविनोबाजी द्वारा प्रेरित, जैन धर्मना सम्प्रदायोना विद्वान् मुनिराजोए मळीने संकलित करेल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520540
Book TitleAnusandhan 2007 07 SrNo 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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