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________________ ७२ अनुसन्धान-४० दृष्टि से भी यह वर्णन ठीक है क्योंकि वनस्पतिशास्त्र के अनुसार पपीता जैसे कुछ वृक्षों में नर या मादा वृक्ष अलग-अलग भी होते हैं और वृक्ष के फूल में भी नरबीज या मादाबीज उपस्थित होते हैं । अपुष्प वनस्पति में पुनरुत्पत्ति के अलग-अलग प्रकार विज्ञान ने बताए हैं। __ जैन मान्यतानुसार सभी वनस्पतियाँ सम्मूर्छिम हैं ।२२ और सभी वनस्पतियाँ नपुंसकवेदवाली हैं ।२३ दशवैकालिक में वनस्पति की पुनरुत्पत्ति के प्रकार अलग-अलग बतलाये हैं ।२४ फिर भी उन्हें सामान्य रूप से नपुंसकवेदी माना है । यह संकल्पना वैज्ञानिक दृष्टि से मेल नहीं खाती । (६) वनस्पति में इन्द्रियाँ : जैन दृष्टि से एकेन्द्रिय सृष्टि पाँच प्रकार की है । पृथ्वीकायिक, तेजसकायिक, अपकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक । इन पाँचों को 'स्पर्शनेन्द्रिय' है । वनस्पतिजीव अन्य चार एकेन्द्रिय जीवों पर निर्भर है ।२५ जैन शब्दावली में उनको वनस्पतिकायिक जीवों का आहार कहा है ।२६ स्पर्शनेन्द्रिय से जितना ज्ञान पा सकते हैं उतना ही ज्ञान उनमें हैं।२७ जीव के एकेन्द्रिय आदि पाँच भेद किये गये हैं, सो द्रव्येन्द्रिय के आधार पर क्योंकि भावेन्द्रियाँ तो सभी संसारी जीवों को पाँचों होती है ।२८ बाकी के इन्द्रियों के विषयों का ज्ञान होने का स्पष्ट निर्देश यहाँ नहीं है । तथापि श्रोत्रभावेन्द्रिय होने का जिक्र कुछ अभ्यासकों ने किया है ।२९ वनस्पति के मन के बारे में जैन मान्यता यह है वह अमनस्क (असंज्ञी) है ।३० आचारांग अर सूत्रकृतांग के पहले श्रुतस्कन्ध में वनस्पति की तुलना २२. तत्त्वार्थसूत्र २.३६ २३. भगवती ७.८.२; तत्त्वार्थसूत्र २, ५० २४. दशवैकालिकसूत्र. ४.८ २५. सूत्रकृतांग २.३.२ २६. सूत्रकृतांग २.३.२-५ २७. भगवती ७.८.५ २८. विशेषावश्यक २९९९, ३००१; दर्शन और चिन्तन पृ. ३०० २९. दर्शन और चिन्तन, पृ. ३०८ ३०. तत्त्वार्थसूत्र २.११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520540
Book TitleAnusandhan 2007 07 SrNo 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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