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________________ जुलाई-२००७ तम्मि दिणे अवरण्हे नाणं पत्तोसि तम्मि चेव वणे । जायं पायसमसणं बीयदिणे विस्ससेणाओ ॥४॥ गणहर अट्ठावीसा कमसो तुह साहुणी सहसा । चालीसा पणपन्ना भत्ता य कुबेर-वइरोट्टा ॥५॥ तह अजिओ नरनाहो तुहाउ पणपन्नवाससहसाइं । सयहीणाई तु वयं गयम्मि अरजिणवरिंदाओ ॥६॥ वासाण कोडिसहसो सम्मेए पंचपंचहि सहे(ए)हिं । साहूण साहुणीणं फग्गुण-सिय-बारसीइ तुमं ॥७॥ उत्तरिय दुत्तराओ अणाइभवपंकओ दुरवयारे । निम्मग्गोऽणंतपए अणंतविरिओसि तुज्झ नमो ||८|| सिरि मुणिसुव्वयणाह-थुत्तं सिरिमुणिसुव्वय ! अवराइयाउ अवराइयं पयं पत्तं । पुन्नावण सावणपुनिमाइ उइन्न तुज्झ नमो ॥१॥ रायगिहे सामंगो सुमित्त-पउमावईण जाओसि । जिट्ठबहुलट्ठमीए कुम्मंको वीसधणुमाणो ॥२।। अद्धट्ठमाई कुमरो वास-सहस्साई पनरस-नरिंदो । होउं नरसहसजुओ नीलगुहाए विहियछट्ठो ॥३॥ सुद्धाए फग्गुण-बारसीइ नीहरिय परदिणे पत्तो । तं बंभदत्तपायसमह पक्खूणे गए वरिसे ॥४॥ तम्मि वणे फग्गुण-बारसीइ बहुलाइ लद्ध-नाणस्स । अट्ठारस गणहारी तुहसि मुणि तीस-सहसा य ॥५॥ पन्नास सहस्सा साहुणीण भत्ता य वरुण-नरदत्ता । विजयनिवोवि य तुह वयमद्धट्ठमवाससहसाइं ॥६॥ तीसं साउं चउपन्न-वास-लक्खेहि मल्लिनाहाओ । जिट्ठ-सिय-नवमीए सम्मेए समण-सहसेणं ॥७॥ भववाडियाइ चउगइचउरं काउं तुमं सभत्तीए । पत्तो सिद्धि मह पहु ! पहुत्तसरिसं फलं देसु ॥८॥ तं बंभदत्तपाय बारसीइ बहुलाइ सहसा य ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520540
Book TitleAnusandhan 2007 07 SrNo 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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