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विहंगावलोकन
उपा. भुवनचन्द्र
अनु० ३८नी प्रथम कृति 'गुरुस्थापनाकुलक' स्थापनानिक्षेप अथवा गुरुपदे स्थापित करवानी विधि अंगेनी कृति नथी परन्तु " आ काळे पण साधुओ छे अने तेमनी निश्राए ज आराधना करी शकाय, श्रावक गुरुनुं स्थान लई शके नहि " एवा मुद्दा पर रचायेली छे. आना कर्ता श्रीधर गृहस्थ श्रावक होवानी सम्भावना वधु छे एवं अनु०ना सम्पादक श्रीनुं कथन स्वीकार्य जणाय छे अने तेथी एक श्रावक द्वारा रचाएली विद्वत्तापूर्ण प्राकृतभाषा बद्ध प्रौढ कृति तरीके आ कृति विशेष नोंधपात्र बने छे. कृतिसम्पादक आनो रचनाकाल १३-१४मी सदी होवानुं धारे छे परन्तु कृतिनो विषय सूचवे छे के रचनाकाल एटलो जूनो नथी. सोळमां शतकमां कडवामती, वीजामती जेवा सम्प्रदायो ऊभा थया हता जेमनी मान्यता हती के "आ काळमां मुनिपणुं न होय" आ मान्यतानो प्रतीकार प्रस्तुत कृतिमां थयो छे. 'संपई केई सड्ढा' (गा. ५३) वगेरेमां आवी मान्यता धरावता वर्गनो सीधो उल्लेख थयो छे. १३-१४मी शताब्दीमां आवा मतना उल्लेख नथी, १६ मा शतकमां छे, तेथी आ कृतिनी रचना १६मा शतकना उत्तरार्ध के १७माना पूर्वार्धमां थई होय ते मानवुं वधु योग्य गणाशे. कर्तानो अभ्यास उच्च कोटिनो देखाई आवे छे, तेथी सोळमा सैकामां पण आवी प्रौढ रचना थवी अशक्य के असंगत नथी.
कृतिना पाठमां वाचनभूलो छे.
गा.
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अशुद्ध
अनाण
संघो
निज्जइ
सुंदर०
० हिस्स
शुद्ध
अन्नाण
संघे
नज्जइ
5 सुंदर
० निहसस्स
अनुसन्धान ३९
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