SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अप्रिल २००७ ३९ ४२ ४७ सामन्न हेण रएसु स(से)वमाणं सम्मत्त तेण (?) वएसु सव्वमाणं Jain Education International ७५ ९५ सा सो ९६ ताइ वीस ता [ग]वीस अमृत पटेल द्वारा सम्पादित पादपूर्तिमय स्तोत्रपञ्चक संस्कृतप्रेमीओ माटे रसल्हाण समुं छे. जैन श्रमणोए गीर्वाणगिराने अर्पित करेलां आवां अगणित कृतिकुसुमो अद्यापि ग्रन्थागारोमा - पोथीओमां प्रकाशनना प्रकाशनी राह जोता कलिकानी जेम अज्ञात पडी रह्यां छे. सम्पादके रघुवंशना पाद शोधवानो श्रम लीधो छे. कृतिओना कर्ता, काल वगेरेना सम्बन्धे सन्दर्भग्रन्थोना आधारे ऊहापोह कर्यो छे. अनुसन्धान करनार दरेक विद्वाने संशोधके सन्दर्भसाहित्यनो पर्याप्त उपयोग करवो जोइए. अनेक संशोधक विद्वानोए जीवनभरना परिश्रमथी साहित्य - पुरातत्त्व - इतिहास सम्बन्धी तथ्योना विशाल सन्दर्भग्रन्थो आपणने तैयार करी आप्या छे. आपणे तेनो उपयोग करवानुं पण आळस दाखवीए छीए ! कृतिसम्पादकोए कृतिसम्बद्ध माहिती सं. ग्रन्थोमांथी एकत्र करीने कृति साथे आपवी जोइए अने कृतिमांथी सांपडेल नूतन माहितीनी चर्चा करवी जोइए. स्तोत्रपञ्चकमांनां शुद्धिस्थानो युगादि जिनस्तवन श्लो. २. अन्तिम चरणे आ प्रकारे होई शके प्राप्नोत्यसावद्भुतभाग्यसिन्धुः - 95 श्लो. ६मां 'यदीशोऽहं' ने स्थाने 'यदीदृशोऽहं' सार्थक बनी रहे छे. श्लो. ९. 'ध्यानानि' नहि 'ध्यातानि ' जोइए. श्लो. १८. गुणाम्बुनिधि० पाठथी छन्दोभङ्ग थाय छे. अहीं 'गुणाम्बुधि० पाठ सहजताथी कल्पी शकाय एम छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520539
Book TitleAnusandhan 2007 04 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy