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अनुसन्धान ३९
१७ प्रकारनी रचना छइं अंग आचारांगादिक, उपांग रायपसेणीप्रमुखमांहैं, जिन भगवानई तथा गणधरइं कही । ए श्रीजिनपूजा केहवी छै ? नरकादिक कुगतिनई हरइ, अनें मुगतिनई आपइ । एहवी पूजा तुझे निरखो || १ || शुचि तनु धोति धरी गंधोदकि, भैणी ( भरीय ) मणिनी कलसाली । जिन दीठइ नमी पूजी पखाली, दिइ निज पातिक गाली ॥२॥ तुह्ये० । तुम्हे पूजाना फल जूओ । शरीर शुचि पवित्र निर्मल करीनें, निर्मल धोतीयां पहिरी, गंधोदकिं क० सुगंध पाणीइं भरी, मणि- कनकादिकनी कलशनी श्रेणिई करीनें । जेणई श्री जिन-जिनेश्वरनें देखीनइं नमी - प्रणमीनई, मोरनें (?) पूंजणीइं पूंजीने, पाणीइं न्हवण करीनई - पखालीनई, एहवो थको पूजक - पूजनारो पोताना पातिक गालई दिई - मोक्षनां सुख आपई एहवी पूजा
उज्ज्वल
॥२॥
समकित शुद्धि करी दुखहरणी, विस्ताविरती करणी | योगीसैरई पणि ध्यानें समरी, भवसमुद्रकी तरणी ||३|| तुम्हे० ॥
वली पूजा केहवी छ ? समकितनई शुद्धिनी करणहारी । समकिति नरगई न जाय तें माटें शुद्धनी करनारी । दुर्गतिनी - दुखनी चुरणहारी । विरताविरती कहतां जे श्रावक तेहनी एह करणी छई । योगीश्वरई पणि ए पूजा पिंडस्थ - पदस्थादि ध्यांनमांहि संभरी छइ । पूजा संसार समुद्रनी तारणहारी - भवसमुद्रमांहि तरवानइं नावा सरीखी छै ते पूजा । वली ए पूजा केहवी छे ?
॥३॥
देखावती नही कबही वेतरणी, कुमतिकुं रवि भरणी ।
सकल मुनीसरकुं शुभ लहरी, शिवमंदिर नीसरणी ॥ भवि तुम्हे ० ||४||
ए सतरभेदी पूजा कहेवी छें ? ए पूजा किवारै वैतरणी नदी नरकमांहे छइं ते देखावइं नही । तेनुं दूख देखावें नही । वली कुमतिनई दीइं थिकै रवि-- भरणीना योगनी परि थाइं । एतलें पूजा थकी कुमतिनो योग - जोर जाई, "भरणी भास्करे देयात्" इति वचनात् । सकल- समस्त मुनीश्वरनई, तथा ग्रंथकर्तानुं नाम उ. श्री सकलचंद जणाव्युं । जें ए सकल
१३. भरीय मणी कनककी कलस आली । ब । १४. योगीसर पिण० -ब. ।
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