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अनुसन्धान ३९
स्नात्र पछी कलश, पछी आरती-दीवो, पछी ८ मंगलने स्थाने स्वस्तिक, अने नैवेद्यपूजाने स्थाने 'अक्षत-त्रिण पूजा' अर्थात् अक्षतनी ३ ढगलीओ (जेने वर्तमानमा ज्ञान-दर्शन-चारित्रनी ढगलीओ गणवामां आवे छे ते) करवानो निर्देश पण अहीं सांपडे छे; . तेने ज नैवेद्यपूजा गणवायूँ कहे
आ पछी मूल विधिनो निर्देश देतां कहे छे के ‘पण नैवेद्यपूजा तो ४ प्रकारना आहार (अशन-पान-खादिक-स्वादिम) थकी ज करवी जोईए ! आटलुं कहीने पण छेवटे 'कोई हठ नथी', 'यथाशक्ति करवू'
एमतो कही ज दे छे. ट्रॅकमां, आ बेऊ नोंधो मननीय छे.. (२) प्रथम ढाल (पूजा)ना टबामां 'न्हवण' (जल) पूजाना विधानमां
श्रावकने आभूषणोथी अलङ्कत थवानो निर्देश थयो छे; तेमांये हाथमां वेढ-वेंटी (वींटी) पहेरवानुं खास सूचन करेल छे. कलश कुल पांच सूचव्या छे, तेमां १ कलश दूधनो अने ४ शुद्ध (अबोट) जलना लेवानुं जणाव्युं छे. वर्तमान पूजापद्धतिमां आथी विपरीत रीते ४ दूधना ने १ जलनो लेवामां आवे छे. आ प्रथाना औचित्य सामे प्रस्तुत निर्देश
मार्गदर्शक बने तेम छे. (३) नव अंगे तिलक प्रभुने शा माटे ? तेनां तात्त्विक कारणोनी चर्चा
द्वितीय पूजाना टबामां मळे छे : नव वाडनी विशुद्धि अर्थे, नव नियाणां टाळवा माटे नव अंगे पूजा छे.
आ पूजा पण सृष्टिक्रमे करवानी छे, संहारक्रमे नहि, तेनो संकेत पण
ते ज ढालमां जड़े छे. (४) बीजी पूजाना गीतमां केशर, चन्दन, घनसार (बरास)-ए त्रण वानांनुं
मिश्रण करी पूजा करवानी वात करतां कडं के आ ३ नो घोल करवानुं रहस्य ए छे के आ ३मां वर्ण, गंध, शीतलता-ए ३ गुणो होवाथी ते ३नो घोल लेवानो छे. केसरनो वर्ण (रंग), चन्दननो गन्ध (सुवास) अने घनसारमां ठंडक - ए त्रणेनी अहीं युति थाय छे. सरस
वात थई छे आ. (५) तो एक विशिष्ट वात आ ज गीतमां ए पण थई छे के, पूज्य एवा
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