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अप्रिल-२००७
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ई. २००६
एक विशद शोधप्रबन्ध-समान ग्रन्थ. आमां १३ अध्याय छे, जेमां जैन विधिविधानोना उद्भव तथा विकासनी विगतोथी प्रारंभीने क्रमशः १. श्रावकाचारसम्बन्धी; २. साध्वाचार सम्बन्धी; ३. षडावश्यक; ४. तपस्या; ५. संस्कार तथा व्रत; ६. समाधिमरण; ७. प्रायश्चित्त; ८. योग-मुद्रा-ध्यान; ९. पूजा-प्रतिष्ठा; १० मन्त्रादि; ११. ज्योतिष-निमित्त; १२. शेष प्रकीर्ण विषय; आटला विषयो-सम्बद्ध विधि-विधान परक साहित्यनी परिचयात्मक विस्तृत नोंध लेखिकाए आपी छे. एकज स्थाने लगभग बधा ज विषयना विधिविधानने स्पर्शती साहित्य-सामग्रीनी जाणकारी उपलब्ध थती होई, आ ग्रन्थ, आ विषयनो महत्त्वपूर्ण सन्दर्भग्रन्थ बनी रहेशे. अहीं लिखित तथा मुद्रित अने प्राचीन तथा अर्वाचीन एम प्राप्य बधी सामग्री विषे नोंध मळे छे. स्वाभाविक रीते ज आमां केटलीक सामग्री छूटी जाय, अने तो तेमा लेखिकानो दोष न गणाय. एटलुं के जो आवी, छूटी गएली सामग्री जाणवामां आवे, तो तेनी नोंध करी लेवाय, अने भविष्यमां आ ग्रन्थनी पुनरावृत्ति के पूर्तिमां तेनो समावेश करी लेवाय, तो ते उपयुक्त थशे. लेखिकाने साधुवाद.
४. सागरविहङ्गमः (सचित्र); सं. कीर्तित्रयी; प्र. भद्रङ्करोदय शिक्षण ट्रस्ट, गोधरा, सं. २०६२, ई. २००६.
Richard Bach नामना अंग्रेज लेखके लखेल, जगप्रसिद्ध आध्यात्मिक नवलकथा 'Jonathan Livingston Seagull''नुं संस्कृत रूपान्तर. सुज्ञ जनोना कथन प्रमाणे, आ प्रकारचें अनुवादकार्य आ प्रथमवार ज थयुं छे. 'नन्दनवनकल्पतरु' नामना संस्कृत अयनपत्र (सं. कीर्तित्रयी) साथे जोडायेल प्रकाशनमाळानुं आ द्वितीय पुस्तक छे.
५. पञ्चसूत्रकम् (सचित्र); कर्ता : श्रीहरिभद्रसूरिः; संस्कृतपद्यरूपान्तरकार:-उपा. भुवनचन्द्रजी; सं. कीर्तित्रयी; प्र. भद्रङ्करोदय शिक्षण ट्रस्ट, गोधरा; सं. २०६३, ई. २००७.
_ 'पञ्चसूत्र' ए भगवान् हरिभद्राचार्यनो सुविख्यात ग्रन्थ छे. तेनो संस्कृत पद्यबद्ध अनुवाद उ. भुवनचन्द्रे प्राञ्जल शैलीमां करीने साहित्य जगत्ने एक
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