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________________ 98 अनुसन्धान ३९ नवां प्रकाशनो १. उ. यशोविजयजीकृत ३५० गाथाना स्तवननो पं. पद्मवजियजीकृत बालावबोध : सं. आ. प्रद्युम्नसूरि; प्र.. श्रुतज्ञान प्रसारक सभा, अमदावाद, वि.सं. २०६३. वाचक श्रीयशोविजयजी गणिनी गुर्जरगिरानी गेय एवी सैद्धान्तिक रचनाओमां ३५० गाथा- सीमन्धरजिन-विनतिस्वरूप स्तवन, पोताना विषयवस्तुने कारणे आगवी मुद्रा धरावती रचना छे. तेना अर्थ-बोध माटे पण्डित श्रीपद्मविजयजी गणिए विशद बालावबोध रच्यो छे. आ स्तवननो विषय गहन छे, तेने उघाडवामां आ बालावबोध घणो उपकारक छे. तेनुं प्रकाशन तो अगाउ थयेल छे, परन्तु प्रस्तुत सम्पादनमां, पूर्व-प्रकाशित वाचनामां रहेली अगणित क्षतिओ सुधारी लेवामां आवी छे, जेने लीधे एक समीक्षित वाचना आमां प्राप्त थाय छे. ३५० गाथाना स्तवनना अध्ययननी परिपाटी जैन संघमां व्यापक होई तेमां आ वाचना घणी उपकारक थशे तेम मानी शकाय. परिशिष्टो तथा सम्पादकीय नोंधो थकी प्रकाशन वधु मूल्यवान बन्युं छे. बालावबोधनी साथे साथे दरेक गाथानो संक्षिप्त-सरल गुर्जरानुवाद पण आपवामां आवेल छे, जे वाचको माटे घणो उपयोगी छे. २. ज्ञानसार - सस्तबक : कर्ता : उपाध्याय यशोविजय गणि; सं. आ. प्रद्युम्नसूरि, डॉ. मालती शाह; प्र. श्रुतज्ञान प्रसारक सभा, अमदावाद; सं. २०६३. ज्ञानसार ए उपा. यशोविजयजीनी प्रसिद्ध तात्त्विक संस्कृत पद्यबद्ध रचना छे. तेनुं अध्ययन जैन संघमां व्यापकपणे हमेशां थाय छे. तेना पर कर्ताए गुर्जर भाषामां बालावबोधनी रचना करेल छे, तेनी सम्पादित वाचना आ पुस्तकरूपे उपलब्ध थाय छे, जे अध्येताओ माटे उपकारक छे. सम्पादकनी प्रस्तावना, परिशिष्टो तथा प्रत्येक पद्यनो सरल गुर्जरानुवाद-आ त्रण वानां होत तो ग्रन्थ, महत्त्व अनेकगणुं वधी जात. ३. जैनविधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास : ले. साध्वी सौम्यगुणाश्री, सं. डॉ. सागरमल जैन; प्र. प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520539
Book TitleAnusandhan 2007 04 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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