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________________ 50 सिंहासण पायपीठ, रयणे जडिउं अ, चालइ साथि अठारमइए || १८ || शिर ऊपरि त्रहि छत्र, धरी रहइ देवता, रयणदंड उगणीसमइ ए । इन्द्रधज आकाश, रयणे जडीय, पंचवर्णी सोहइ वीसमए ए ॥ १९ ॥ एकवीसमइ सुरराय, जिन पाए ठवइ, रूडां नव सोवन कमल । बावीसमइ गढ त्रणि, रयण रूपमय, गढ त्रीजु सोवन विमल ॥२०॥ मद्धिभाग मणिपीठ, बइसी शंहासनि, दे देशन जिनवर भली ए । श्री पहिला कूणि ईशाणि, दस इन्द्र - देवता, नर-नारी रही सांभलइ ए ||२१|| अगनि कूणि रहइ, त्रिहि साधु-साध्वी, वैमानिक देवी सुणइ ए । नैरति कुणि विचार, त्रिहुंनी देवीय भवनपति - विंतर - जोतिषी ए ॥ २२॥ चुथी वायनी कूणि, ए त्रिहुं देवता, भवनपति - विंतर - जोइसीया ए । इम कही परषध बार, गढ बीजइ वली तरीय सवे सहु तिहां रह्या ए ||२३|| रथ- पालखी वाहन्न, हस्ती तुरंगम, शस्त्रे सवे गढ त्रीजइ रहइ ए । मणि कोसीसांउलि, चिहुं दसि त्राहित्रिहि रखवाला पोलि अछइ ए ॥ २४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only अनुसन्धान- ३८ www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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