SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 34 श्री श्रेयांसजिन स्तवन सं. उपाध्याय भुवनचन्द्र आ दीर्घ स्तवनकृतिनी हस्तप्रति राधनपुरना विजयगच्छना ज्ञानभण्डारमां छे. फोटोकोपी करावती वखते पोथी - प्रतक्रमांक नोंधवानुं रही गयुं छे. रचनावर्ष १७९४ छे. रचयिता पण्डित अथवा पंन्यास विशेषसागर छे. तेमनी गुरुपरम्परा कृतिना अन्तभागमां आपेली छे : विजयक्षमासूरिविजयदयासूरि-वाचक कुशलसागर पण्डित उत्तरसागर- चतुरसागर पण्डित लालसागर - विशेषसागर. हस्तप्रतमां 'विजयक्षेमसूरि' लखेलुं छे, परन्तु तपागच्छनी पट्टावलीमां 'विजयक्षमासूरि' जोवा मळे छे. अनुसन्धान- ३८ सांतलपुरना मार्गे कच्छ - वागडमां प्रवेश करतां सर्वप्रथम गाम आडीसर आवे छे. अहीं श्री श्रेयांसनाथ भगवाननुं देरासर हतुं. मूलनायक श्री श्रेयांसनाथ भगवाननी प्रतिमा अने प्रतिष्ठा विशे प्रस्तुत रचना सुन्दर प्रकाश पाडे छे. पाटणना सोनी रायमल्ले श्री विजयसेनसूरिना हस्ते आ प्रतिमानी प्रतिष्ठा सं. १६६८मां करावेली., आ बिम्ब पाटणमां एकसो चौद वर्ष रह्युं. आडीसरना संघे नवं देरासर बंधाव्युं. मूलनायकनी प्रतिमानी जरूर हती, ते माटे सेठ रायमल्लनी भरावेली प्रतिमा पाटणथी लाववामां आवी. सं. १७८२ मां मोटी धामधूम साथै प्रतिष्ठा करवामां आवी. स्तवनमां आ प्रतिष्ठा उत्सवनुं वर्णन नथी आपवामां आव्युं परंतु बिम्ब भरावनार श्रेष्ठिनो परिचय विशेषरूपे अपायो छे : ओसवाल वंश, बूहड शाखा, गोठि गोत्र, सोनी रायमल्ल ठाकरसी, भार्या नगाई. स्तवनमां श्री श्रेयांसनाथ प्रभुना जीवनना प्रसंगोनुं काव्यमय वर्णन छे. एक-बे स्थले पंक्तिओ सुधारीने लखवामां आवी छे, तेथी कदाच आ प्रति मूलादर्श प्रति होय. Jain Education International श्री श्रेयांसनाथ भगवाननुं देरासर भूकम्पमां ध्वस्त थयुं छे, प्रतिमाजी सलामत छे अने नूतन मन्दिरमां हवे पुनः प्रतिष्ठा थई छे. जो के मुख्य जिनालय घणा समयथी श्रीआदीश्वर भगवाननुं गणाय छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy