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________________ June-2006 63 कर्यु अने अलभ्यप्राय आ ग्रन्थने सुलभ बनाव्यो, ते तेमना द्वारा थयेली उत्तम साहित्यसेवा छे. आ ग्रन्थनी प्रस्तावना लखतां आ. श्री प्रद्युम्नसूरिजीए निर्देश्युं छे के "आना जेवो जैन शिल्पस्थापत्यनो इतिहास रचवानो बाकी छे. कोई मातबर संस्था आ बीडं झडपवा जेतुं छे." आ वांचतां सूझेली टिप्पणी : हजी तो पाशेरामां पहेली पूणीनी जेम, ७-८ तीर्थोनो शिल्पशास्त्रीय परिचय आपती पुस्तिकाओ, विख्यात स्थापत्यविद् डॉ. मधुसूदन ढांकीए आपी; त्यां तेनो विरोध आपणा कहेवाता धार्मिको द्वारा थई गयो, अने ते विरोधने मान्य गणीने आणन्दजी कल्याणजी पेढीए ते पुस्तिकाओने withdraw पण करी नाखी ! आ बाबतनी डॉ. ढांकीने जाण पण कराई नथी ! आजे तो खुद डॉ. ढांकीने ते पुस्तिकाओ जोईती होय तोय न मळे तेवी स्थिति छे. आ संजोगोमां जैन शिल्पस्थापत्यनो इतिहास लखवापात्र गणाय खरो ? अने ते लखवा माटे डो. ढांकीथी श्रेष्ठ कोई अधिकारी विद्वज्जन छे खरा ? अने मातबर संस्थानी भूमिका केवी होय ते तो उपरोक्त बाबतमां अनुभवाय ज छे ! अस्तु. इतिहासबोधना कारमा अभावथी ग्रस्त एवा समाज सामे, पोते चोक्कस साम्प्रदायिक दृष्टिकोण धरावता होवा छतां, मो. द. देशाईना आ महान् इतिहासग्रन्थने यथावत् रूपमा पुनः सुलभ करी आपवा बदल सम्पादकश्रीने अभिनन्दन ! ४. पाइअ (प्राकृत) भाषाओ अने साहित्य. प्रणेता : प्रो. हीरालाल रसिकलाल कापडिया; सं. आ. मुनिचन्द्रसूरि; प्र. ॐकारसूरि ज्ञानमन्दिर, सूरत; ई. २००६, सं. २०६२. __ ही.र.कापडिया ए जैन विद्वज्जगतनुं एक मातबर तेम माननीय नाम छे. तेमने रचेल आ सन्दर्भग्रन्थ वर्षोथी अलभ्य हतो, ते सम्पादकश्रीए विविध विगतोथी संवर्धित करवापूर्वक सुलभ करी आप्यो छे. उत्तम प्रकाशन ! -x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520536
Book TitleAnusandhan 2006 06 SrNo 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages70
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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