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अनुसन्धान ३६
तो आनन्दघनने केटलो बधो अन्याय थशे ? अने वाचकोने केवा आनन्दघन लाधशे ? ओछामां पूरुं, आ बे पुस्तको साथे ४ MP3 नी Disk नो Set पण प्रसिद्ध थयो छे !
(२) ग्रन्थना भाग-२मां पृ. ३५८ पर १०९ मुं पद जे जोवा मळे छे, ते तेनी भाषा, रचनाशैली अने गेयता आदि तमाम दृष्टिए तपासतां ते पद आनन्दघन, नहि, पण तेमना नामे चडावी देवायेलुं एकदम अर्वाचीन गणाय तेवं पद छे. अनुभव, सुमति, चेतनजी जेवी शब्दावली प्रयोजवामात्रथी कोई नवरचनाने आनन्दघनना नामे न खतवी शकाय. विवेचक पासे आवा विवेकनी अपेक्षा सेवीए तो ते वधु पडती नथी.
ओकंदरे, आनन्दघनप्रेमीओने रस पडी शके तेवू प्रकाशन.
जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास. ले. मोहनलाल दलीचंद देशाई, पुनर्मुद्रणना सम्पादक : आ. विजयमुनिचन्द्रसूरि; प्र. ॐकारसूरि
ज्ञानमन्दिर, सूरत, ई. २००६, सं. २०६२. ___ मो. द. देशाईए जैन इतिहास अने साहित्यना क्षेत्रमा जे कार्य कर्यु छे ते अद्यावधि अजोड ज बनी रह्यं छे. तेमनुं स्थान ले अथवा तेमणे ज्यांथी अधूरं मूक्युं छे त्यांथी ते काम आगळ वधारे तेवो बीजो विद्वान हजी सुधी तो पाक्यो नथी. आ विद्वाने ई. १९३३ना अरसामां आ अद्भुत इतिहास ग्रन्थ/ सन्दर्भग्रन्थ रच्यो अने साहित्यजगतने आप्यो हतो. आ ग्रन्थनो उपयोग, अभ्यासुजनो तथा विद्वानो-संशोधको, एक अनिवार्यपणे उपयोगी एवा सन्दर्भ ग्रन्थ तरीके, हमेशां करतां होय छे.
___ आ ग्रन्थनी शुद्धि-वृद्धि-पूर्ति करवानुं भगीरथ कार्य सद्गत प्रा. जयन्तभाई कोठारीए हाथमां लीधेलं. तेमणे ते काम कर्यु होत तो आपणने जैन गूर्जर कविओ जेवी एक श्रेष्ठ ग्रन्थावली मळत, एमां शंका नहि. पण दुर्भाग्ये तेओ स्वर्गस्थ थया अने आ आदरवा धारेलु काम पड्युं रह्यु.
आ. श्री मुनिचन्द्रसूरिजीए जयन्तभाईनी नोंधोनो प्रायः · उपयोग करवापूर्वक तथा पोतानी क्षमता तथा शक्यता मुजब आ ग्रन्थनुं पुनः सम्पादन
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