SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 57 फेब्रुआरी - 2006 बूंब परे सब दो रहे ले ले आयुध हाथ वदन मिलीन करे जसा जावे कोइ अनाथ ॥४०॥ भगत भली भगवंतकी संगत भली सुं साध ओरनकी संगत्ति जशा आठे पोहोर उपाध ॥४१॥ मुरख मरन न देखीयत करत बहुंत आरंभ सात विसन सेवे जशा करे धर्म बिच दंभ ॥४२॥ याग करे प्रानी हणे भाखे धर्म उलंठ देखो ग्यांन विचारके क्युं पावे वैकुंठ ॥४३॥ रीश त्याग वैराग धर हो योगी अवधुत शीवनगरी पाये जशा करे ऐंशी करतूत ॥४४॥ लेंहणा देहणा कछु नही मुहकी मिठी वांत हृदये कपट धरे जशा ताके शिर पर लात ॥४५॥ वरशें वारधी अहोनीशे पाख रतीनुं पान भाग्य विना पावे नही याचक दाता दान ॥४६।। शंख शरिखा उजला नर फुटरा फरक जशा न सोभे दांन विण ज्यु बुटी कान धरक ॥४७॥ खरो पवहे सुरको रण विच मुंड विहंड पाछा पाउ धरे नही जो होवे सत-खंड ॥४८॥ सायर मोती नीपजे हीरा हीरा खांण जिहां ग्यांन ध्यान त्या नीपजे जिहा सुगुरु की वांण ॥४९॥ हस्त ही मंडण दांनं हे घरमंडण वरनार कुलमंडण अंगज जसा मानवमंडण सार ॥५०॥ लंछन निसपति शांतरुची सुरज लंछन ताप दाता लंछन धण विना सवहुं दया सराप ॥५१॥ क्षांत दांस(दांत) न ता(समता)रता हंणे नही षटकाय जसा पांन किरियामगन सो साधु कहिवाय ॥५२॥ सतरसें तीसे समें नवमी सुकल अषाढ दोधक बावनी जसा मूर नक्षत करी गाढ ॥५३|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy