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________________ 56 झाझी वात न किजीइं थोरा ही मे आंन जसा बराबर लेखवो आप प्रांण परप्रांण ॥२६॥ नग - दुहितापति आभरण ताको अरि जशराज तश पति नारी विण पुरुष न वधे शोभा लाज ॥२७॥ टाणा टुणा छोर दे याथे न शरे काज चोखें चित जिनधर्म कर काज शरे जशराज ॥२८॥ ठग सो जो पर मन वसे पर उपजावे रोझ जशा करे वश जगतकुं साचा ठग सोइ ज ॥२९॥ डरे कहा जशराज कहें जो अपने मन साच खिण मे परगट होइगा ज्यौं प्रगटाये काच ||३०|| ढा कोट अग्यांनका गोला ग्यान लगाइ मोहरायकुं मार लें जसा लगे सब पाय ||३१|| नही ( दी? ) नखी नारि तथा नाग नकुल जशराज नाइ नरपति निगुण नर आठे करे अकाज ॥३२॥ तारें ज्यौं नर कुं जशा भवसायरमे पोत त्यों गुरु तारे भवंजलनिधि करे ग्यांन उद्योत ॥३३॥ थोभ लोभ नही जीउंकुं लाख कोरी धन होत समता जो आवे जशा सुख सदा मन पोत ||३४|| दक्षण उत्तर च्यार दिशि जशा भमे धनकाज प्रापत्ति विना न पामी कोर करो अकाज ॥ ३५ ॥ धन पाया खाया नहि दिया भी कुछ नाहि सो वांगुल होई जशा ढुढत्त हे धन माहिं ॥ ३६ ॥ नीगुण पुत्त नारि नीलज कूंपही खारो नीर निषर ( निपट ? ) मित्त जशराज कहें पांचे दहं शरीर ||३७|| पर उपगारी जगतमे अलप पुरुष जशराज सीतल वचन दया मया जाकें मुख परी लाज ||३८|| फोज दिशोदिस मिल गई जशा धुरें नीशांण झुझे शनमूख जाइने सुंर गणे नही प्रांण ||३९|| Jain Education International अनुसन्धान ३५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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