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________________ फेब्रुआरी - 2006 25 श्रीउवज्झायजी सूत्र वखांणे रे, मुनीवरथी वर आचार वखांणे रे । श्रीअणगारजी धर्म आराधे रे, चिहुंविध तीरथपूजा साधे रे ||५|| श्रावक आगमधर्म संभाले रे, श्रीजिनधर्मनी आगन्या पाले रे । श्रमण उपासक छे गुणवंती रे, सुमति सुधारसमें बुधवंती रे ॥६॥ धवल ने मंगलगीतनें गावें रे, प्रवचन आगम वांणीने भावे रे । सद्गुरुनी तिहां पुजा कीजें रे, उघो ने मोमती तिहां अरचीजे रे ।।७।। सोवनफूलडे गुरुजी वधावो रे, सोवन मोतीडे रे थाल भरावो रे । मांणक मोतीडे थाल भरावो रे, सोभती गहुली तीहां पुरावो रे ||८|| आगममंडल धर्म जगावें रे, सदरुनी तिहां सेवा भावो रे । मुनीचंद्रनाथजी आगम भाषे रे, शिवपद शाशणनो हित दाखे रे ।।९।। इति श्री धर्मदत्तदेवप्रकाशिते तीर्थस्थापना भास वाणी ॥ (२) ढाल: वेलनी ॥ श्रीजिनशाशन ध्यावो रे, जिहां मंगलीक सूत्र भणावो । सद्गुरु प्रवचन बोले रे, जिहां आगमविद्या खोले ॥१॥ चवदे पुरव धुर सारो रे, मूल मंत्र कह्यो नवकारो । आगमविद्या आराहो रे, सहगुरुजी कहें तीम ध्यायो ।।२।। श्रीजिनपूजा कीजें रे, जिम आगमसूत्र भणीजे रे । गणधरना गुण गावो रे, तिहां धर्म आचारज ध्यावो रे ॥३॥ उवझाय ते थवीर तवीजे रे, अणगारनी सेवा कीजे । अरीहंत में सिधनें ध्यावो रे, निज आतम चैतन भावो ॥४॥ तीरथ च्यारे ही देवा रे, निज कीजें आतमसेवा । ज्योत्य झलामल दीसे रे, निज चैत्यनराज कहीजें ॥५॥ आतम चैतनराया रे, सदगुरुजीए तेह वताया । प्रवचनसारमा भाषे रे, बुधदेवप्रभु जीन आपे ॥६॥ तीरथ चैतन साचो रे, जिन आगमवयणने वाचो । सहगुरु धर्म सीखावे रे, निज आतम ब्रह्म वतावें ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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