SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फेबुआरी - 2006 बार भावना ॥ ॥५०॥ अथ अवधुकीर्तिलिख्यते ॥ दोहा ॥ ध्रुव वस्तु निश्चल सदा अथ भाव प्रज्याव । स्कंधरूप जो देखीइं पुदगलतणो विभाव ॥१॥ जीव सुलक्षणा हो मो प्रतिभासिओ आज परिग्रह परतणा हो तासुं को नहि काज । कोई काज नांहि परहुं सेती सदा ऐंसो जांनीइं चेतनरूप अनुप निज धन ताहिसें सुख मानीइं ॥ पिय पुत्त बंधव सयल परियण पथिक संगी पेखणा सम नांण दंसणस्यउं चरित्तहें रहें जीव सुलक्षणा ॥२॥ असरण वस्तु ज परिणवन सरण सहाइ न कोय । अपनी अपनी सकतिके सबे विलासी जोय ॥३॥ छन्द ॥ मरणा जाणे आयुहे कायर सोइ होय मोह व्यापए तासहो सरण विसोइ जोय । नवि सरण जोवहि अप्प सोहही सत्य छे न जु भासही पहिचांन कृत क्रम-भेद न्यारे शुद्ध भाव प्रकासहि ॥ जिम धाय बालक अन्नभेदी बाहिर मारग सम धरे जीवतव्य तासौ देह पोषी मरण सेती को डरें ॥४॥ दोहा ॥ संसाररूप को वस्तु नांहि ए भेदभाव अग्यांन । ग्यांनदृष्टि धरि देखि जियरे सबे सिद्धि समान ॥५॥ छन्द ॥ ए संसार ही भाव हो परसुं कीजें प्रीति जहां सुखदुख मानीइं हो देखि पुदगलकी रीति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy