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________________ 166 अनुसन्धान ३५ बार भावनाओनुं तार्त्तिक स्वरूपवर्णन छे. कर्ताए प्रथम कडीथी सीधुं भावनानिरूपण ज आदरी दीधुं छे; आरम्भनी तथा अन्तनी प्रचलित औपचारिकताओमां तेओ पडता नथी. आ पण तेमनी निःस्पृह उच्च भूमिकानुं सूचक छे. भाषा मारु - गुर्जर अथवा मारवाडीप्रधान हिन्दी छे. बे ज छन्दोनो उपयोग कर्यो छे : दुहो तथा छन्द. आ छन्द ते सम्भवतः कुण्डलिया होय तेवुं मने लागे छे. चोक्कस तो जाणकारो कही शके. आनन्दघन - साहित्यना प्रेमीओ तथा अभ्यासीओने बराबर जाण छे के तेमनी भाषा केटली गहन- गम्भीर, मार्मिक अने अल्पाक्षरी होय छे. आपणे एम धारीए के बार भावना तो प्रसिद्ध विषय छे, तेने तो सुगमताथी समजी - उकेली शकाय, तो अवश्य थाप खाई जवाय तेवुं छे. द्रव्यानुयोगना विषयने आ लघु कृतिमां तेमणे ठांसी ठांसीने एवो तो भरी दीधो छे के अभ्यासीओ निरन्तर ऊंडुं मन्थन कर्या ज करे, अने तोय तत्त्वनो ताग मळे के ना मळे ! प्रसंगोपात्त, एक वात जणाववी अत्रे प्रस्तुत थई पडशे के 'गुजराती साहित्य कोश (मध्यकाल ) ' जेवा सन्दर्भ ग्रन्थमां 'लाभानन्द' नामक कविनुं अधिकरण ज नोंधायुं नथी. हा, 'आनन्दघन'ना अधिकरणमां, तेमनुं नाम 'लाभानन्द' होवानो उल्लेख जरूर छे, पण ते नामनुं जुदुं अधिकरण नथी. कर्तानी सर्व रचनाओ 'आनन्दघन' ए नामथी ज मळे छे, तेथी ज आम हशे एम मानी शकाय; साथे एम पण नक्की थाय के 'लाभानन्द' नामना अन्य एक पण कवि मध्यकालमां थवानुं नथी नोंधायुं, तेथी पण आ रचना आनन्दघनजीनी ज छे एम सिद्ध थाय छे. आ रचनानी भाषा स्तवनो / पदोनी भाषा करतां वधु कठिन छे. बनारसीदास वगेरे अध्यात्मविदोए प्रयोजेली भाषा प्रायः आ प्रकारनी छे. थी ते प्रकारनी कृतिओ - भाषाना तज्ज्ञो ज आना शब्दार्थ पकडी शके. अने ते पकड़ाय तो ज यथार्थ पदच्छेद आदि थाय. अत्यारे तो यथामति नकल करी मूकी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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