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फेब्रुआरी- 2006
रचना संवत् :-- लेखक ने पत्र - - प्रेषण का समय नहीं दिया है, किन्तु तृतीय चरण में जिनचन्द्रसूरिजी के वर्णन में जो प्रमुख कार्यों की गणना की है उस के अनुपात से पञ्च नदियों के पांच पीरों का साधन उन्होंने विक्रम संवत् १६५२ में किया था । १६५२ के पश्चात् की किसी प्रमुख घटना का उल्लेख इसमें नहीं है । पाटण सं. १६५७ में विराजमान आचार्य के आदेश से ही समयसुन्दरजी मेड़ता आए थे और आचार्यश्री का चातुर्मास खम्भात में था । चातुर्मास सूची के अनुसार सं. १६५८ का चातुर्मास खम्भात में था । अतः अनुमान किया जा सकता है कि संवत् १६५८ खम्भात में विराजमान आचार्यश्री को यह पत्र प्रेषित किया गया था ।
प्रेषण स्थान :- चतुर्थ चरण में प्रेषक ने मालकोटात्तटान् मेदिनीतश्च का प्रयोग किया है । मेदिनीतट मेड़ता का प्रसिद्ध धाम है । और उस समय में जोधपुर के अन्तर्गत मुख्य स्थान था । मालकोट शब्द यहाँ किस ग्रामस्थान का बोधक है ? यह चिन्तनीय है ।
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प्रति : राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर संग्रह में प्रेस कॉपी नम्बर ७४८ पर प्रतिलिपि सुरक्षित है जिसके छः पत्र है ।
यह पत्र ऐतिह्य एवं महादण्डक छन्द में असाधारण रचना होने के कारण विद्वज्जनों के आह्लाद हेतु पठनीय है।
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