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________________ 58 अनुसन्धान ३४ 'इग्यारसी' एवो पाठ अपभ्रंशनो न होइ शके. 'नेमिनाथस्तोत्र' श्लो. १मां 'चरीयन्निज्जइ' छे त्यां 'नेमिचरीय(व)निज्जइ' होइ शके. श्लो. ३ मां 'कुल तसुण' छे त्यां "कुलतरणि' जेवो शब्द विचारी शकाय. श्लो. ४ मां 'रायमह' नहि, 'रायमई' होवू जोइए. 'पार्श्वनाथस्तोत्र'मां श्लो. ३मां 'जम्मुत्सवो' त्यां (जम्मुस्सवो) एम सुधारेलो पाठ कौंसमां आपवो जोइए. 'महावीर स्तोत्र'मां श्लो. ४मां 'वालंभ' शब्द छे. तेनुं मूळ 'वल्लभ' शब्द छे, अने 'वालम' रूपे गुजरातीमां ऊतरी आव्यो छे. वचगाळानुं रूप 'वालंभ' अहीं जोवा मळे छे, ते भाषाशास्त्रीओ माटे रसप्रद बनशे. ___ महाकवि मेघविजयगणि विरचित 'सेवालेख' पण विज्ञप्तिपत्र छे. कर्ताना साहित्यजीवनना प्रारंभकाळनी आ रचना होय तो १७मा शतकनो अंतभाग आनो रचनासमय गणी शकाय. संस्कृत अने साहित्य श्रमणसंघमां केवा आत्मसात् थइ गयां हतां तेनुं नेत्रदीपक दर्शन आवां पत्रो करावे छे. चालती कलमे लखायेली आ लघुकाव्य समी रचनामा उत्प्रेक्षा-उपमा जेवा अर्थालंकारो अने वर्णानुप्रास जेवा शब्दालंकारो छूटे हाथे जाणे वेरायां छे. अनायास रचाइ जता प्रासना नमूना जरा जोइए : "श्चिराय रोचिः शुचि संचिनोति' ९१६), 'नष्ठोऽष्टः समतिष्ट दिष्टा०' (२), 'त्वत्सेवया नर्मदया दयालो (१६५), १८८मो श्लोक ध्वनिओना पुनरावर्तनथी केवो कर्णमधुर बन्यो छे ते तो तेनुं गान कराय त्यारे ज समजाय. समर्थ कविओ नवा शब्दोना स्रष्टा बनता होय छे. कविवर मेघविजयजीनी कलमे एक एवो नवो शब्द सर्यो छे : स्वाधीयते (१२९). 'स्व' अहीं उपसर्ग तरीके आव्यो छे ने 'स्वाध्याय करवो' एवा अर्थनो नवो धातु जन्म पाम्यो छे. १पृथुक' (१५४) =पौंआ होवानुं समजाय छे. आ बन्ने शब्दो अन्यत्र जोवा मळ्या छे के केम ते विषे सम्पादक अथवा अन्य कोई विद्वान् प्रकाश पाडे एवी अपेक्षा. केटलांक शुद्धिस्थानो : श्लो. ४४ अनेकशोभासुर अनेकशोभाभर संभू (?)तानि संभृतानि श्लो. ६७ . दर्वी... दुर्वीपस्य श्लो. ६८ - पाठ त्रुटित नथी, श्लोक पूरो छे. श्लो. ६९ पुरावनीपौरा० पुरावनीपो, राभेय. श्लो. ७४ सु -नोपकारं स्युः सुजनोपकार० १. पृथुक ए पहुंआ अर्थमा प्रयोजातो रह्यो छे. 'पृथुकः स्याच्चिपिटकः' एवं अमरकोष पण प्रमाणे छे. (चिपिटक-चीवडो =चेवडो). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520534
Book TitleAnusandhan 2005 11 SrNo 34
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages66
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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