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________________ नवेम्बर 57 विहंगावलोकन-३३ उपा. भुवनचन्द्र तेत्रीसमा अंकना अलंकार समी बे विशिष्ट रचनाओ छे. उपाध्यायप्रवर श्री यशोविजयजीनी गणिअवस्था दरम्यान रचायेल श्री सुविधिपार्श्व जिनस्तव (जे अपूर्ण प्राप्त थइ छे) अने श्री शंखेश्वरपार्श्वजिनस्तुति अने ए सम्पादित थई छे. संशोधनप्रिय ज नहि, पण संशोधनभक्त एवा मुनि श्री धुरंधरविजयजी द्वारा. कृतिओनी विशिष्टता अनेक रीते छे : १. बने अद्यावधि अप्रगट रचनाओ छे. २. उपाध्यायजीना गुरुना हाथे लखायेली छे. ३. बन्ने कृतिओ पूर्वर्षिरचित अन्य कृतिओनी अनुकृति छे. ४. सम्भवतः उपाध्यायजी म.ना साहित्यसर्जनना प्रारम्भकाळनी रचनाओ जणाय छे.. प्राकृत छन्दो अने अपभ्रंशकालीन छन्दोमां पण उपाध्यायजी म.नी लेखिनी अनवरुद्ध रूपे वहेती अहीं जोवा मळे छे. प्रत्येक अभ्यासीए उपाध्यायजी म.नी सर्वतन्त्र स्वतन्त्र प्रतिभाना एक अलग आयामना दर्शन माटे पण आ रचनाओ वांची जवी जोइए, दुर्भाग्य एटलुंज छे के 'अजित-शान्तिस्तोत्र'ना अनुकरण रूपे रचित 'सुविधि-पार्श्वस्तव'ना अन्तिम ९ श्लोको ज सम्पादक मुनिवरने हाथ लाग्या छे. बाकीना श्लोकोनां पानां पण आ ज रीते संशोधनलब्धवर एवा सम्पादक मुनिवरने हाथ चढे एवा सुखद योगानुयोगनी कामना मनमां थई आवे. पृ. ५, श्लोक. १६ : 'संखेसरपासणाह !' एवं संबोधन नहीं, पण 'संखेसरपासणाह समरण...' एवं सामासिक पद आ स्थळे योग्य गणाशे. पृ. ६, श्लो. २० : 'विरविज्जुईई' छे त्यां 'तिमिराई व रविज्जुईई' एवो पाठ वधु संगत बने. म. विनयसागरजी द्वारा बे सम्पादनो तथा बे चर्चापत्र आ अंकमां सामेल छे. वृद्धवये पण संशोधन-सम्पादननी प्रवृत्ति तेओ करता ज रहे छे ए आपणा माटे आनन्दनी वात छे. जयशेखर लिखित विज्ञप्तिलेख प्रमाणमां अर्वाचीन छे, परंतु जैन श्रमणोमां साहित्य दैनिक/सामाजिक कार्यक्रमोमां केटलुं ओतप्रोत हतुं तेनुं दर्शन करावी जाय छे. सम्पादकीयमा जणाव्युं छे तेम, वि.सं. १४४१मां लखायेलो विज्ञप्ति लेख मळे छे. प्रस्तुत पत्र १८९७ मां लखायो छे. विज्ञप्तिलेखनी परिपाटी पांचसो वर्ष सुधी तो प्रचलित रही हशे एवं कहेवामां वांधो नथी. मुनिश्री कल्याणकीर्तिविजयजीए विविध गेय रचनाओ सम्पादित करी छे. 'आदिनाथ स्तोत्र' श्लो. १मां 'रिसह!' एवं सम्बोधनरूप उचित बने' श्लोक ४मां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520534
Book TitleAnusandhan 2005 11 SrNo 34
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages66
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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