________________
92
अनुसन्धान ३३
पछी भुवनसुन्दरसूरिओ (आनु. ई.स. १३९० - १४५०) नव्यन्यायनी पद्धति अने शैलीमा वादीन्द्रनी कृति महाविद्याविडम्बन उपर टीका रची. ते श्रीहरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शनसमुच्चय उपर तर्करहस्यदीपिका टीकाना रचनार गुणरत्नसूरिना शिष्य हता. पछी बीजा एक गुणरत्रगणीओ ई.स. सोळमी शताब्दीमां केशवमिश्रनी तर्कभाषा उपरनी गोवर्धनकृत टीका उपर तर्कतरंगिणी टीका नव्यन्यायनी पद्धति अने शैलीमां लखी, अने तेमणे ज गंगेशना तत्त्वचिन्तामणि उपर सुखबोधिकानी रचना करी. काळक्रममां त्यार पछी आवता उत्कृष्ट कोटिना महान चिन्तक अने तार्किक न्यायविशारद उपाध्याय यशोविजयजीओ नव्यन्यायनी शैलीमां अनेक ग्रन्थो रच्या. ते ग्रन्थोमां नोंधपात्र छे अनेकान्तव्यवस्था, भाषारहस्य, प्रमाणरहस्य, न्यायालोक अने न्यायखण्डखाद्य.
नगीन शाह
२३, वालकेश्वर सोसा.,
अमदावाद - १५
焱燚
१. धर्मशिक्षा प्रकरणम् ; कर्ता : जिनवल्लभसूरि; वृत्तिकारः उपाध्याय जिनपाल गणि; सं. म. विनयसागर प्र. प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, ई. २००५ विक्रमना ११मा शतकमां थयेला खरतरगच्छीय विद्वान जैनाचार्यनी धर्मबोधप्रद उत्तम संस्कृत पद्यरचना तथा तेना परनी प्रगल्भ वृत्तिनुं पठनीय
प्रकाशन.
आंबावाडी,
२. शुभशीलशतक ( प्रथम ); कर्ता : शुभशील गणि; हिन्दी अनुवाद : म. विनयसागर प्र. प्राकृत भारती, जयपुर; ई. २००५.
Jain Education International
१६मी शताब्दीमां थयेल तपागच्छीय पं. शुभशील गणिए पञ्चशतीप्रबोध प्रबन्ध नामे सरस प्रबन्धग्रन्थ रच्यो छे, जे प्रकाशित छे (सं. मृगेन्द्र मुनिं ). तेमां ५०० थी अधिक कथा - प्रबन्धो संस्कृत भाषामा आलेखायेला छे, जेमां घणाबधा ऐतिहासिक पण छे. आ प्रबन्धो भाषाकीय दृष्टिए पण अभ्यसनीय छे.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org