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________________ September-2005 इय जिणवीरह कणयसरीरह सत्तहत्थ - उच्चत्ततणु । जय गणहरगोयम ! जगि जस उत्तम फली (लि) य-सयल - कल्लाणवण ॥७॥ ॥ इति श्रीमहावीरस्तोत्रम् ॥ (२) अथ चन्द्रप्रभुस्तव[:] षड्भाषाबन्ध[द्धः ] लिख्यते ॥ नमो महसेननरेन्द्रतनु (नू)ज ! जगज्जनलोचनभृङ्गसरोज ! | स(श) रद्भवसोमसमद्युतिकाय ! दयामय ! तुभ्यमनन्तसुखाय ! ॥१॥ सुखीकृतसादरसेवकलक्ष ! विनिर्जितदुर्जयभावविपक्ष ! | सुरासुरवृन्दनमस्कृत ! नन्द महोदयकल्पमहीरुहकन्द ! ॥२॥ ॥ इति संस्कृतभाषा ॥ 25 [ छन्द: पज्झटिका ] जय नीरसीय (निरसिय) तिहुयणजंतुभंति ! जय मोहमहीरुहदलणदंति ! | जय कुंदकलीसमदंतपंति ! जय जय चंदपह ! चंदकंति ! ॥३॥ जय पणयपाणिगणकप्परुक्ख ! जय जगडियपयडकसायपक्ख ! | जय निम्मलकेवलनाणगेह! जय जय जिणंद ! अपडिमदेह ! || ४ || ॥ इति प्राकृतभाषा ॥ विगद - दुहहेदु-मोहारिकेदूदयं दलिद-गुरु-दुरिद-मद- विहद-कुमुदख (क्ख) यं । नाध ! तं नमदि जो सदद- नद- वच्छलं लहदि नी (नि) व्वुदिगदि (दिं) सो ददं निम्मलां (लं) ॥५॥ इति सू( शू ) रसेनीभाषा ॥ असुल-सुल - विसल-नल- लाय - सेविदपदे नमिल - जयजंतु - तुदि दी (दि)न्न - शिवपुल - पदे । चलण-पू(पु)ल-निलद - संसालि-सलसीलुहे देहि मह शामि ! तुं शालशासद - पदे ॥ ६ ॥ ॥ इति मागधि ( धी ) भाषा ॥ [ छन्दः त्रोटकः ] तलिताखिल-तोस-तया - सतनं मद (त) नानल-नील - ममानगुणं । नालिनारुण-पात-तलं नमते जिन ! जो इध तं स शि(सि) वं लभते ||७|| ॥ इति पैसाचकी ( पैशाचिकी ) भाषा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520533
Book TitleAnusandhan 2005 09 SrNo 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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