SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 24 अनुसन्धान ३३ चित्त-चउत्थीइ कसिणाइ वाणारसीनयरि निव-आससेणस्स वामा सई । पोसदसमीइ कसिणाइ जम्मुत्सवो तास इग्यारसी गिण्हए संजमो ॥३॥ कसिण-चउत्थीइ चित्तस्स तुह केवलं सुद्ध-अट्ठमिहिं श्रावणह पत्तो सिवं । नाह-तणुमाण नव-हत्थ फणिलंबणो वरिससउ आउ जिण नयण-आणंदणो ॥४॥ जिण विघन-विणासण-पाव-पणासण पास पसन्नउ होउ महो । पउमावइदेवी जसु पयसेवी मनवंछित-सुह देउ महो ॥५॥ ॥ इति श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् ॥ श्रीमहावीरस्तोत्रम् ॥ जयउ सो सामी वीरजिणंदो, पिक्खिय लंछणि जासु मइंदो । संगमकामिणि-मणि-मणि-वासो, कामकरी किम करइ उल्हासो ॥१॥ नयसार-सोहमि-मिरीय-सुबंभे, कोसी(सि)य-सुर-वसुमित्त-सुहम्मे । अग्गिजोई-ईसाण-ऽगिभूई, सिरिभारदह-महिंद-चउगई ॥२॥ थावर-सुर-वसुभूइ य सक्के, हरि-नारय-सीह-नारय-चक्के(क्की?) । सकीय नंदण-पाणय-चवीउ, देवाणंदा-ऊ(उ)अरि अवयरिउ ॥३॥ सी(सि)यछट्ठि-ऽसाढह वसीउ बियासी-दिणि आणेई हरिणेगमेसी । कुंडगामि सिद्धत्थह नरवइ-वालंभ-त्रिसला तसु कुक्खि आवइ ॥४॥ चैत्र-सी(सि)य-तेरसि जायु जम्म, मेरु-कंपावी(वि)य सुणीइ रम्म । छप्पियनंदण दईय जसोआ, नंदिवर्धन पहो जाणे भाया ॥५॥ बहुल-दसमि पहु मगसिरमासह, दिक्ख लेउ सही(हि) या उवसग-सहस । सिय-वइसाह-दसमिइं केवल, कत्ती(त्ति)यऽमावस सुद्ध-सी(सि)य-निम्मल ॥६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520533
Book TitleAnusandhan 2005 09 SrNo 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy