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________________ June-2005 39 तद्दन नवा, विलक्षण, आधुनिक अर्थघटननो एक समर्थ प्रयास थयेलो जोवा मळे छे. कर्ता पोते ज प्रारम्भना श्लोकमां सूचवे छे के - "मेघदूतना नूतन अर्थो द्वारा हुं अकबरनी स्तुति करीश" - (पद्य ६). एकाक्षरी अने अनेकार्थी शब्दकोशो, तथा व्याकरणना केटलाक विचित्र नियमो अने सूत्रोनो आधार लईने, मेघदूतना श्लोकोना प्रत्येक पदनी तोडफोड के जोडतोड करीने, तेना नवा ज अर्थ घटाववानुं दुर्घट के विकट प्रयोजन कविए साधी बताव्युं छे, जे अजोड छे, अने विस्मयप्रेरक पण. तेमणे पोते, आथी ज, आने 'मेघदूत-खण्डना' एवा नामे ओळखावेल छे. खण्डना एटले तोडफोड. तपगच्छपति जैनाचार्य हीरविजयसूरि अने दिल्लीपति अकबर- ए बेनो सम्बन्ध तो इतिहाससिद्ध अने जगप्रसिद्ध छेज. ते बन्ने पात्रोनां गुणगान गावाना लक्ष्यने केन्द्रमा राखीने ते काळे अनेक कृतिओ रचाई होवा, पण हवे सुपेरे जाणीतुं छे. परन्तु ते प्रयोजनने माटे 'मेघदूत' जेवा प्रेमकाव्य के सन्देशकाव्यनो उपयोग करवानुं सूझे, ते कवि विलक्षण प्रतिभाना स्वामी ज होवा जोईए, एमां शंका नथी. - अलबत्त, आवी रीते काव्यनां तमाम पदोने तोडी-जोडीने नीपजाववामां आवता अर्थो सुघट के सुगम होय छे तेवू तो जराय नथी. बल्के आQ करवाथी क्लिष्टता अने दुर्गमता ज वधती जणाय छे. तो पण, प्रसिद्ध वस्तूना प्रचलित अर्थाने साव छोडी दईने तेना नवा ज अर्थो नीपजाववा, ए काई सामान्य अने सामान्य बुद्धि-प्रतिभानुं काम तो नथी ज नथी, एटलुं स्वीकारवू ज रह्यु. पं. मानसागरजी ए हीरविजयसूरिशिष्य पं. बुद्धिसागरजीना शिष्य हता एवं, आ विवरण-कृतिना ४२ मा पद्यने अन्ते पोते आपेल पुष्पिका परथी नक्की थाय छे. तेमने विषे बीजी माहिती प्राप्य नथी, पण 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' (मो. द. देसाई, पृ. ५९७)मां मळती नोंध प्रमाणे, "त. विजयसेनसूरिराज्ये (सं. १६५२-१६७१) बुद्धिसागर शि. मानसागरे शतार्थी पर वृत्ति रची." - ए परथी १७मा शतकना पश्चार्धमां तेओ विद्यमान होय तेम अनुमानी शकाय छे. आ सन्दर्भमां शतार्थी--वृत्तिनो जे उल्लेख थयो छे, ते प्रायः सोमप्रभाचार्यकृत शतार्थी (१ श्लोकना १०० अर्थ) उपरनी वृत्ति होय तो बनवाजोग छे. जोके मध्ययुगमां तो आवा विविध शतार्थी-ग्रन्थो रचाया छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520532
Book TitleAnusandhan 2005 06 SrNo 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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